Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 76
________________ जैन-जीवन पदाकि समय उन्नने प्रभुसे व्याकरण-सम्बन्धी अनेक जटिल प्रश्न पूछे, उन्होंने इसी क्षण नरका समाधान कर दिया। का जाना है कि उन प्रश्नोंत्तरोंस एफ व्याकरण बन गया, जो नन्द्रमा नामले प्रसिद्ध है। गौवन आने पर प्रभुने मीरा नामकी राजकन्यासे विवाह किया। प्रियदरांना नामक एक पुत्री हुई, जिसका पाणिग्रहण जत्रियामार उमालिक सायाया। श्रीवर्धमानके माता-पिता मग. वान् पाश्र्वनाथ पावर गे, इसलिए प्रभु ज्ञान--(प्रायक) पुत्र भी फलाए । उन्होंने बहुत वर्षों तक प्रावधर्म पाला और 'अन्त में अनशन पर बारह स्वर्गमे देवता हुए। माता-पिताका स्वर्गवास होने पर भगवान की प्रतिक्षा पूर्ण हुई और वे दीक्षार्य तयार हुए। देवोंने प्राचीन परम्परा अनुसार सुवर्णमुद्राएँ उपस्थित की। भगवानने एक चर्प दान देकर देवों एवं मनुष्यों के सम्मुप मंचम स्वीकार किया तपस्यार्थ बनकी तरफ़ विहार करने लगे, नव इन्द्र ने कहा-प्रमोददमन्य-श्रवस्थान प्रापको उपसर्ग बहुत गे, इसलिए मैं यापकी मेवाम न जाऊँ। प्रभु बोल-न्द ! ऐसेन नो कमी या पीर नही कमी होगामितीर्थकर फिनीका महाराना चाई। प्रनकी प्रदान माहममरी-वाणी सुनकर नोट- गर्मायने माता सुपर लिए हाय-पर न हिलाने से যা ধৰি ৰ গণ মা খা খা মান মিন গান ৭ ঘন ? । বন দাশ না মন সব কী যা কি -निवासी विमान में दो महीगा।

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