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जैन-जीवन
लाट देशमें विहार करते समय तीन साल तक अनाद लोगोंने अज्ञान एवं द्वेपके वश प्रभुको चोरटा कह कर अनेक प्रकारके वनोंसे वोधा और लकुटादिकसे पीटा। कहीं उनके पीछे कुत्ते लगवाये गए, तो कहीं उनके पैरों पर सीर रांधी गई। इन्द्र से प्रशंसा सुनकर अभव्य समा नहीनों तक साथ रहकर बड़ी भारी तकलीफें दीं। फिर भी फूलने पर भगवान्ने उसको अपना हितैषी ही बताया। तब उसने अत्यन्त होकर एक ही रातमें बीस उपमर्ग किए। वामुसीचींटियो वि सांप, हाथी एवं सिंहादि बनाकर ध्यानस्थ भगवानके शरीर पर छोडे, हजार-भारका गोला उनके मस्तक पर
कासे गिराया तथा ऐसी सूक्ष्मरजोंकी वृष्टिकी, जिससे सांस लेना भी मुश्किल हो गया। फिर भी भगवान सुमेरुपर्वतकी तरह अपने ध्यानमें अडिग रहे ।
एकदा अज्ञानी ग्वालेने अपने बैल न मिलनेसे रोपामा होकर कानोंमें कीलियां लगा दीं। भी पीड़ा हुई, मुँह सूज गया फिरमी प्रभु तो उसकी परवाह न करते हुए ध्यान ए तपस्या ही लीन रहे । मौका पाकर निकाल दिया, लेकिन भगवान तो समतामे
।
पर था, और नये पर राग था छोटी-नी लेग्रनी कहां तक चन कर सकती है। इस प्रकार बारह वर्ष और तेरह
ने उन कीलियों को
निमग्न थे। न तो
तुच्छ-सी बुद्धि
तक भगवान महा