Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 75
________________ प्रसङ्ग सत्रहवां भगवान महावीर सच्चे वीर वही होते हैं, जो कष्टोंके समय भी औरोंका सहारा नही लेते। किसी कविने कहा भी है:जो तैराक हैं दरियाका किनारा नहीं लेते, जो मर्द हैं गैरोंका सहारा नहीं लेते । '. लेकिन ऐसे कहना जितना सरल है, काम पड़ने पर मज-बूती रखना उससे लाखों गुणा कठिन है। कण्टोंके समय किसीका सहारा न लेनेवाले वीरोंमें भगवान महावीर एक प्रमुख वीर थे । जैनजगतमें ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो उनका नाम नहीं जानता। इस अवसर्पिणीकालमे भगवान महावीर चौबीसवें तीर्थंकर थे। प्रभुने क्षत्रियकुण्डनगरमें चैत्र शुक्ला त्रयोदशीको माता त्रिशलाकी कुक्षिसे जन्म लिया था। पिता सिद्धार्थ राजा थे, बडे भाई नन्दीवर्धन व बड़ी बहिन सुदर्शना थी । जबसे महावीर माता त्रिशलाके गर्भ में आए तमीसे राज्यमे अन्न-धन आदि हर एक वस्तु बढ़ने लगी, इसलिए पिताने अपने पुत्रका नाम श्रीवर्धमानकुमार रखा। जन्मसमय इन्द्रादि देवोंने भी परम्परागतरीतिके अनुसार प्रभुका जन्म-महोत्सव किया। 'बचपनमे आमलकी-क्रीडाके समय बल-परीक्षार्थ एक देवता अपनी पीठ पर बैठाकर प्रभुको आकाशमे ले गया, किन्तु मुक्का मारते ही रोता हुआ नीचे आ गया और क्षमा मांगकर वर्धमानको वीर नामसे सम्बोधित करने लगा।

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