Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 68
________________ ५६ जन-जीवन फमठ शर्मिदा होकर वहां से चला गया, किन्तु उसको अपमानका दुःख इतना लगा कि या आमरण अनशन लेकर मरणको प्राप्त हो गया और तपस्या बलस मकुमार देवता - बन गया। पूर्वजन्मका स्मरण होते ही यह श्राग-बबूला होकर बेरका बदला लेने के लिए हरसमय बल-दिन देखने लगा। दीक्षा और उपसर्ग इधर प्रभु तीन वर्ष गृहस्थाश्रम भोगकर संयमी बने एवं तपन्या धन मे पधारे। मौका पाकर कमठ देवता पाया और भयंकर भूत-पिशाच श्रादिका रूप बनाकर उपमर्ग करने लगा। मरणान्त-उपमर्ग करने पर भी प्रभुने अपने ध्यानको नहीं होता, तय देवता और भी मन्द हुना तथा प्रलयका-मा मेघ निर्वित करके मूसलाधार पानी बरसाने लगा। पानीमें भगवानका शरीर प्रायः दूब चुका था। प्योंही पानी नाक तक पहुँचा, अघधितानसे जानकर शीघ्र ही गागरात भरणेन्द्र श्राकर अपने इष्ट देवको ऊँचा ठा लिया । पानी परसानेमें देवताने इद कर दी, फिर भी प्रभु तो उनके ऊँचे ही रहे। याचिर घरगेन्द्रका भेद पाकर कमट परराया एवं परनी मारी माया ममेट कर भगवान के चरणों में नमा मांगने लगा. लेकिन प्रमु तो अपने भ्यानमे लीन थे। उनके दित न तो कम प्रतिदप था, और न अपने परममा नागराज प्रति राग या. सदातिना विचित्र मा बा, ममताया

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