Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ जैन-जीवन पालन किया था) तथा माद्रीके दो पुत्र थे- नकुल और सहदेव । पारके पुत्र होनेसे वे पांचों पाएडयके नामसे प्रसिद्ध हुए। चचपनसे ही पैर । कौरव-पाण्डव साथ ही रहते थे और बाल्यलीला करते थे। भीम विगेप बलवान होनेसे दुर्योधनके भाइयों को प्रेमवश बैल-कूदमे सूत्र ही पटकता-पछाड़ता था, किन्तु दुर्भावना नहीं थी। फिर भी दुर्योधन देव-देख कर जलता ही रहता था। सुक बड़े होने के बाद ये मय पाचार्ग एवं द्रोणाचार्ग के पास पढ़ने लगे। कर्ण भी वहीं या गया और दुर्योधनका मित्र वन कर पाएटयोंसे (न्वास करके अर्जुनसे) पूरी शत्रता रखने लगा। द्रोणाचार्यकी वर्ग तथा अर्जुन विशेष भक्ति करते थे, फिर भी उन्होंने अर्जुन से अधिा प्रसन्न होकर उसे अद्वितीय-बाणालि बनाया और राघावेध मियाया। . द्रोपदीका स्वयंवर पतराष्ट्र जन्मान्ध होनेसे महाराज पाएदु राज्य करने थे। पिल्यपुग्पति राजा द्र पदकी पुत्री द्रोपदीका स्वयंवर हुआ। अनेर गजे-महाराजे आए। अर्जुनने राधाव किया। एवं दोपदीने उसके गले में वरमाला पानाई। किन्तु वह पूर्वकुननिदानास पांचोक गम दीसने लगी। सर्वसम्मतिसे उन पांचोंक गय द्रोपदीका विवाद हुमा! परन्तर कल न हो इसलिए नारदः पाम पास्टवाने प्रनिता कर ली कि द्रोपदीप महलमें एक होने दूसरा नहीं जाएगा। यदि कोई भूलसे चला जाएगा

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117