Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 58
________________ १६ . जैन-जीवन आदि वजन मिलने प्राए । राजयुमारी उत्तरासे वीर अभिमन्युका विवाह किया गया पीर मानन्द-मंगल मनाए गए। फिर श्रीकपाक 'यामहले पाएटव द्वारका बाप एव पर्जुनके सिवा चारों भाइयोंको दमानि चार कन्याएं दीं। परामर्श करके श्रीहरिने दुर्योधनफे पास दूत भेजकर कहलवाया कि तेरे कथनानुलार पाण्टयोन नेरह वर्ष व्यतीत कर दिए हैं, अब इनका राज्य लौटा कर अपने बचनका पालन पर । दुर्गधिन नहीं माना, तब भीरि खुद ही दुत बन कर उसे समझाने गए और यहां तक का दिया कि पारपाको मात्र पांच गांव ही दे दे। किन्तु अभिमानी बोलाको नाम डिसी जो भी लो. निनानी दूगा! रुष्टमान श्रीहरि कृष्ण कष्ट होकर चलने लगे तब भीष्मादि युद्धोंने पैर परद कर उनने किमी मी पचाने न लगनेका अनुरोध किया। करगने मान लिया और कहा कि मैं एनमें शस्त्र गारा ही pr जाते समय उन्होंने नर्गको अन्दरका भेद बता कर फूट दालनेकी काफी कोशिश की, लेकिन बह तो दुर्योधनके लिए पहले ही विक चुरा था। कृष्ण द्वारका पाप और उनके पथनानुसार पारडर मान प्रक्षोहिणी मेना लेकर मुररमें पारने नयाद्रपदपुत्र को सेनापति बना कर कौरवोंकी प्रतीजा करने लगे। पर मीट मेनापतित्वम द्रोण, कृप, कर्ण, शल्य, मग. दन प्रादि वीसने परिन ग्यारह-पनी हिगी दलयामः दुर्योधन

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