Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 44
________________ ३ जन-जीवन - माता-पिता भी न बचे अपने माता-पिता (रोहिणी, देवकी और यमुदेव) को बचाने) लिए रयमे बिठाकर हरि-हलधर ज्यों ही दरवाजे के नीचे पाए: देवताने उन्हें वहीं रोक दिया और दरवाजा गिराकर माता-पिताको मार दिया। तीनों ही उत्तम जीव अनशन करके स्वर्गमें गये। रोहिणी-देवकी आगामी चौबीसी मे तीर्थकर होंगी। जो दिव्य नगरी इन्द्र के हुक्मसे वैश्रवणदेवताने वसाई थी, माधीवश एक तुच्छ देवता उमको भस्म कर रहा है और कृष्णबलभद्र देग्य देख कर रोरहे हैं। पर कुछ नहीं कर सकते, इसी लिए तो कहा है विचित्रा कनया गति ! पाण्डवमधुराकी तरफ़ 'अब क्या करना ? कहां जाना? कुछ भी समझमे नहीं याता । 'प्रापिर दोनों भाइयोंने पाण्डवमथुराकी तरफ प्रस्थान किया, रास्तेमे भूप लगी। राम हलकल्प पुरमे गये (जहां दुर्योधन का पुत्र राजा था) और हलवाई के यहांसे अपनी नामाशित मुद्रिका देकर एड न्याना परीदा। रामका नाम देखकर उसने राजाको मार दी। राजा सेना लेकर पाया । दरवाजे बन्द कर दिए एवं बलपहले रोक लिया। पना पाते ही कृष्णाने लात मारकर दरवाजे नौर दिए और माईको हुदा लिया। फिर पाना खाकर मारी अनमें प्राण । मृगको प्यास लगी। राम पानी लेने गगे, लेकिन उनले भावी पानी न मिजा!

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