Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 45
________________ प्रसङ्ग दसवां ३३ तीर लग गया रहे थे । कृष्ण वृक्ष के नीचे पैर के ऊपर पैर रखकर सो अचानक तीर लगा और वे चौंककर बोले- कौन है ? देखा तो जिसने भाईकी रक्षा के लिए बनवास लिया था वही भाई जराकुमार सामने खड़ा-खड़ा रो रहा है और माफी मांग रहा है । कृष्णने उसको सान्त्वना देकर पाण्डवोंके पास भेज दिया । अब जो तीर लगा था उससे भयंकर पीड़ा होने लगी एवं उसी कारण से श्रीहरिके प्राण छूट गये । अजब है कर्मोंका खेल, जिनके आगे देवता खड़े रहते थे, उनको अन्त समय पीनेको पानी तक नहीं मिला । रामकी दीक्षा कहींसे खोजकर श्री बलभद्र पानी लेकर आए, लेकिन आगे दीपक बुक चुका था । काफी आवाजें देने पर भी कृष्ण' न बोले । फिर भी वे मोहवश कुछ नहीं समझे और छः महीनों तक उनको उठाए फिरते रहे। आखिर देवोंने समझाया, तब शरीरका संस्कार किया और दीक्षा लेकर वनमे ध्यान करने लगे । जब कभी वहां भिक्षा मिलती तो ले लेते अन्यथा भूखे ही रहते, लेकिन शहर में न जानेका संकल्प कर लिया था। वहां उनको जातिस्मरणज्ञानवाला एक हिरण मिल गया था। वह भिक्षाकी दलाली करता रहता था। तीनों की सद्गति एक दिन एक बढ़ईके रोटियां आई थीं। मृगके साथ मुनि

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