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प्रसङ्ग सातवा
मल्लि प्रभु ज्ञानी कहते हैं कि शरीरमें साढ़े तीन करोड हैं और साढे छः करोड़ रोग हैं। ऊपरसे चाहे कितने ही शृङ्गार सझे जाएं, किन्तु अन्दर दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध है। यह बात मल्लिमभुने बहुत ही युक्तिसे समझाई थी और मोह-अन्ध छहों नरेशोंको वैरागी बना दिया था।
मल्लि-प्रभु मिथिलापति कुम्भ राजानी रानी प्रभावतीकी एक रति रूपा कन्या थी। यौवन आने पर उसकी सुरम्य नीलकान्तिकी महिमा दूर-दूर तक फैल गई और बडे-बड़े नरेश याचना करने लगे। किन्नु कुमारीने वचपनसे ही ब्रह्मचर्य स्वीकार कर लिया था अतः जो कोई भी विवाहसम्बन्धी प्रश्न रसता था, मुग्म नरेश उन्कार कर देते थे।
एक बार महिनुमारीसे जबरदस्ती विवाह करनेके लिए अगा, युणाल, काशी, कौशल, कुम और पंचाल इन : देश के राजाओंने एक ही नाथ मिथिलानगरी पर घेरा डाल दिया और गुरम राजाले दूतों द्वारा कहलवाया कि या तो वे उन्हें अपनी पुत्री दे दें या लड़ाई करने को तैयार हो जाएँ।