Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 41
________________ २६ प्रसङ्ग दसवां जलकर पाताल में चले गये। मैं तो उन्हें पातालसे भी निकालकर ले आऊगा ऐसे कहकर वह कृष्णकी चितामें घुसा और देवीने उसे भस्मकर दिया । द्वारका पुरीमें कृष्ण यादव सानन्द सौराष्ट्र पहुंच गये। वहां श्री कृष्ण के पुण्यों द्वारा इन्द्रके हुक्मसे वैश्रवरण देवताने प्रत्यक्ष स्वर्ग जैसी द्वारकानगरी वसाई और उसमें श्री कृष्ण राज्य करने लगे । उनके समुद्रविजय आदि नौ ताये थे । श्री वासुदेवजी पिता थे । भगवान् अरिष्टनेमि आदि अनेक तायेके पुत्र भाई थे । श्री बलभद्र आदि अनेक विमातृज भाई थे । सत्यभामा, रुक्मिणी आदि सोलह हज़ार रानियां थीं । प्रद्युम्न आदि अनेक पुत्र थे । कुन्ती - माद्री दो पुत्राएं थी, उनमें कुन्तीके पुत्र महारथी पाण्डव थे, जिनके लिए महाभारतमे उन्होंने खुद रथ चलाया था । माद्रीके पुत्र महाराज शिशुपाल थे, जिनको जरासन्धके युद्ध में उन्होंने अपने हाथोंसे मारा था । उनके परिवारका पूरा वर्णन करना बहुत मुश्किल है I 1 जरासन्धबध कृष्णादि यादवोंको जरासन्ध अबतक मृतक ही मानता था, किन्तु व्यापारियों द्वारा जीवित सुनकर समुद्रविजयसे दूतके साथ कहलवाया- या तो राम-कृष्णको हमें दे दो या लड़ने आ जाओ । समाचार सुनते ही राम कृष्णको आगे करके क्रुद्ध यादव युद्धार्थ रवाना हो गये । भीपण संग्राम हुआ, श्री कृष्णके हाथसे जरासन्ध

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