Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 10
________________ जैनहितैषी तीन बड़े बड़े पत्थरके टुकड़े किसी कदम्बवंशीय राजाकी * आज्ञासे यहाँ पर लाये गये । इनमेंसे दो पत्थर तो अब भी पड़े हैं। परन्तु तीसरा बिलकुल खंडित हो गया है । एक और लेख मिला है जिसमें लिखा है कि उक्त ताल जिनदेवका ( के निमित्त ) है । सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बातें ‘लकिदोडे' नामक तालके पास मालम हुई हैं। पर्वतके इस भागकी पहले कभी खोज नहीं हुई थी । यहाँ पर ३० नये शिलालेख मिले हैं जो नौवीं और दशवीं शताब्दियोंकी लिपिमें लिखे हुए हैं। इनमें अधिकतर उन यात्रियोंके नाम लिखे हैं जो यहाँ दर्शनके निमित्त आये थे। इनमेंसे कुछ यात्री जैनगुरु, कवि, पदाधिकारी और अन्य प्रतिष्ठित मनुष्य हैं । एक लेख 'कंड' नामक छंदमें दिया है और शेष सब गद्यमें हैं । इनमसे कुछमें यात्रियोंके नाम मात्र ही लिखे हैं । इस पर्वतकी रक्षाकी बड़ी जरूरत है, नहीं तो ये लेख धीरे धीरे मिट जायेंगे और संसारमेंसे एक महत्त्वपूर्ण चीज़ जाती रहेगी। ये लेख यात्रियोंके नामोंको तो बतलाते ही हैं; परन्तु इनसे इस ऐतिहासिक बातका पता लगता है कि नौवीं और दशवीं शताब्दिमें श्रवणबेलगुलका माहात्म्य कायम था और इसके दर्शनोंके लिए दूर दूरके लोग आते थे। कहा जाता है कि पार्श्वनाथ बस्तीके सामनेके मानस्तंभ और मंदिरके घेरेको उम ग्रामके दो निवासियोंने 'चिक्कदेवराज उडेयर' नामक राजाके समयमें —जिसने सन् १६७२ से १७०४ तक राज्य किया है * इस वंशके बहुतसे ( कदाचित् सब ) राजा जैन थे, इस बातका पता और लेखोंसे भी लगा है। क्या कोई महाशय इस वंशके राजाओंकी खोज जैनग्रंथोंसे करनेका कष्ट उठावेंगे जिससे इनका एक इतिहास तयार हो सके ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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