Book Title: Jain Dharma ka Yapniya Sampraday
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 14
________________ [ xii ] और उसकी परम्परा १३०, पिण्डछेदशास्त्र १४३, छेदशास्त्र १५३, अपराजितसूरि की विजयोदया टीका १५४, आवश्यक सूत्र (प्रतिक्रमण सूत्र ) १६०, बृहत्कथाकोश ( आराधनाकथाकोश) १६५, बृहत्कथाकोश के यापनीयत्व में बाधक तथ्य और उनके प्रामाण्य का प्रश्न १६९, हरिषेण और जिनसेनरचित हरिवंशपुराण १७०, महाकवि स्वयंभू और उनका पउमचरिउ १८०, जटासिंहनन्दि का वराङ्चरित और उसकी परम्परा १८५, पाल्यकीर्ति शाकटायन और उनका शाकटायनव्याकरण २००, शाकटायन के शब्दानुशासन की यापनीय टीकाएँ २०३, शाकटायन के स्त्रीमुक्ति और केवलीभुक्ति प्रकरण २०५, प्रभाचन्द्रकृत तत्त्वार्थसूत्र २०६, विमलसूरि और उनके पउमचरियं की परम्परा २०८, पउमचरियं की दिगम्बर परम्परा से निकटता सम्बन्धी कुछ तथ्य २०८, सिद्धसेन दिवाकर और उनके सन्मतिसूत्र की परम्परा २२३, क्या सिद्धसेन दिगम्बर हैं ? २२५, सिद्धसेन के काल के आधार पर उनके सम्प्रदाय का निर्धारण २३०, क्या सिद्धसेन यापनीय हैं ? २३२, तत्त्वार्थसुत्र और उसकी परम्परा २३९, तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता २४०, तत्त्वार्थ के आधारभूत ग्रन्थ २४४, क्या उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र का आधार कुन्दकुन्द के ग्रन्थ हैं ? २४७, तत्त्वार्थसूत्र के मूलपाठ का प्रश्न २५३, सूत्रों का विलोपन एवं वृद्धि २५४, सूत्रगत मतभेद २५५, क्या तत्त्वार्थसूत्र का भाष्य-मान्य पाठ अप्रामाणिक और परवर्ती है ? २५७, क्या वाचक उमास्वाति और उनका तत्त्वार्थसूत्र श्वेताम्बर परम्परा का है ? २६२, क्या प्रशमरतिप्रकरण और तत्त्वार्थभाष्य भिन्नकृतक हैं ? २६७, क्या तत्त्वार्थसूत्र और तत्त्वार्थभाष्य भिन्नकृतक हैं ? २७८, सर्वार्थसिद्धि का पाठसंशोधन क्यों ? २९२, विचार-विकास की दृष्टि से सर्वार्थसिद्धि और तत्त्वार्थभाष्य का पूर्वापरत्व २९९, तत्त्वार्थभाष्य की स्वोपज्ञता एवं प्राचीनता ३०५, भाष्य की प्राचीनता ३०६, स्वोपज्ञभाष्य की आवश्यकता ३१०, तत्त्वार्थसूत्र के कुछ सूत्रों का दिगम्बर मान्यताओं से विरोध ३११, क्या तत्त्वार्थ और उसका स्वोपज्ञभाष्य श्वेताम्बरों के विरुद्ध है ? ३१६, क्या तत्त्वार्थभाष्य का श्वेताम्बर परम्परा से विरोध है ? ३४८, क्या तत्त्वार्थ यापनीय परम्परा का ग्रन्थ है ? ३५०, तत्त्वार्थ का काल ३६६, उमास्वाति का जन्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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