Book Title: Jain Dharm aur Jivan Mulya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 9
________________ अनुक्रम 50 1. श्रमण धर्म की परम्परा 2. जैन संस्कृति का वैशिष्ट्य 3. महावीर के चिन्तन-कण 4. अनेकान्त : वैचारिक उदारता 5. जैन धर्म का आधार : समता 6. जैन प्राचार-संहिता अहिंसा : स्वरूप एवं प्रयोग 8. अपरिग्रह के नये क्षितिज 9. स्वाध्याय : ज्ञान की कुजी 10. कर्म एवं पुरुषार्थ जैनधर्म : बदलते सन्दर्भो में 12. पर्यावरण-संतुलन और जैनधर्म 13. महायानी आदर्श और जैनधर्म 14. कुम्भाकालीन मेवाड़ में जैनधर्म 15. जन साहित्य में जीवन-मूल्य 60 11. 66 70 79 85 95 101 120 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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