Book Title: Jaiminiyam Sutram
Author(s): Nilkanth Jyotirvid
Publisher: Nilkanth Jyotirvid
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HDXX20040204MOCHAN ACADEMIOCHOCHCHAGAROOO000-00-RHAADO PORANORE
करोतिबहुवर्षोंसौस्वराशेर्दूरगःखगः एवंसर्वसमालोच्यजातस्यनिधनंवदेदितिस्पष्टार्थाःश्लोकाः एकःस्वोच्चेत्यस्यार्थः। यदितुबहुवर्षदएकोराजापरक्षेत्रगः अपरस्तुराजाऽन्यक्षेत्रगएवोच्चगोल्पवर्षदस्तदाबहुवर्षदंत्यकाऽल्पवर्षदमेवोच्चग्रह माश्रित्यनाथांताइति रीत्याऽब्दानयनंकार्यमिति अन्यच्चवृद्धैरुक्तंन्यासयोग्रहहीनत्वेवैकस्यान्येनसयुतौयायाराशिर्य हाभावस्तत्स्वाम्युच्चंगतोयदिएकत्रस्वःगः खेटश्चान्यत्रौग्रहौयदिग्रहहययुर्तिहित्वाग्राहयेत्पूर्वभंसुधीरितिअयमर्थः न्यासयोःलग्नसप्तमयोईयोःस्थानयोःयहाभावेअथवाइयोर्मध्येएकस्यान्येनकेनचिद्ग्रहेणस्वेशातिरिक्तनयुतीसत्यांचत
यावदीशाश्रयंपदमृक्षाणाम् २९ त्रयोराशिया॑येननिर्बल:सराशिस्तद्राशीशे उच्चंगतेसतिबलवानेवनापरःसग्रहोपिएकत्रराशीस्वक्षेत्रगोग्रहः अपरत्रही ग्रहौस्तस्तदासस्वामिकराशिरेवबलवानितिहितीयपद्यतात्पर्यउच्चराशयस्तुअजवृषभमृगांगनाकुलीराझषवणिजीच दिवाकरादितुंगाः दशशिखिमनुयुक्तिथींद्रियांशैस्त्रिनवकविंशतिभिश्चतेऽस्तनीचाइतिपंचमेपदकमात्प्राक्प्रत्यकमि तिवक्ष्यमाणसूत्रात्कम देनदशालेख्याआरंभावधिस्तुलग्नमेवचरदशायामत्रशुभः केतुरितिसूत्रादस्यादशायाश्चरदशे तिनामबोध्यम्२८ अथायेफलविशेषज्ञापनायराशीनामारूढापरपर्यायंपदमुपदिशतिऋक्षाणांराशीनांईशाश्रयंयावई
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