Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 20
________________ वास से यहां तक नहीं जानते हैं कि जैन दर्शन का क्या सिद्धान्त है? केवल इतना जानते हैं कि हम जैनी हैं और कई यह भी जानते हैं कि हम तीर्थकर वीतराग के उपासक है। इसके सिवा जैन धर्म के तत्त्वों को अथवा वैज्ञानिक जैन साहित्य को जानने वाले बहुत ही कम हैं। इससे प्रचलित भाषाओं में जैनधर्म के शुद्ध तत्त्वों को बतलानेवाले ग्रंथ जितने अधिक विद्वान् द्वारा लिखे जायँ और छपकर प्रकाशित हो उतना अधिक श्रेय है और इसी हेतु से मैंने भी यह ग्रंथ लिखा है। ___ इस ग्रंथ में वेद, ब्राह्मण, स्मृति, उपनिषद् और पुराण आदि ग्रंथों के और और भी अनेक ग्रंथों के प्रमाण प्रसंगानुसार दिये गये हैं और श्री शंकराचार्य स्वामी के ब्रह्माद्वैत के वारे में भी परामर्श किया गया है इसलिये इस ग्रंथ को निष्पक्षपात बुद्धि से पढ़नेवाले अन्य दर्शनी भी लाभ उठा सकते हैं । . इस विषय पर एक निबन्ध लिखने का मेरा विचार बहुत दिनों से था परन्तु शारीरक और मानसिक आपत्तियों के कारण कई दिन तक यह कार्य नहीं कर सका । किन्तु गत वर्ष में सब प्रकार की शांति मिलने से यह कार्य बनने का मौका मिला यद्यपि जैसा चाहिये वैसा तो नहीं बना है क्योंकि यह पारमार्शिक विषय है और दूसरा कारण यह भी है कि किसी एक विषय पर जब तक अनेक विद्वानों की लेखनी न चले तब तक वह विषय पूर्णांग रूप से स्पष्ट नहीं हो सकता यह स्वाभाविक नियम है और इस विषय पर जैसी चाहिये वैसी लेखनी विद्वानों ने नहीं चलाई ऐसा मालूम होता है इससे संस्कृत ग्रंथों के पूर्ण विचार प्रचलित भाषा में नहीं आये इससे इसमें कितनी बातो की त्रुटियां रह गई भी होगी किन्तु अब भी कोई जैन विद्वान् , यति, मुनि इस विषयपर एक उत्तम ग्रंथ लिखे तो बहुत ही अच्छी बात है। किसी विद्वान् को मेरी भूल चूक हुई मालूम हो तो मुझे अवश्य सूचना करै यदि वह सूचना सत्य मालूम होगी तो उपकार माना जायगा और द्वितीयावृत्ति में अवश्य सुधार दिया. जायगा। काशी की यशोविजयजी जैन पाठशाला और ग्रन्थमाला के उत्पादक, शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्रीमान् विजयधर्मसूरी जी महाराज के मुख्य शिष्य मुनिमहाराज श्रीमान् इन्द्रविजयजी ने इस

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