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उद्धृत किया गया है; पर हां साम की तरह प्रायः बिलकुलही ऋग्वेद से नकल नहीं किया गया । यजुर्वेद ( वाजसनेय-संहिता ) का कोई एक चतुर्थाश मन्त्रभाग ऋग्वेद से लिया गया है; शेष यजुर्वेदही के ऋषियों की रचना है । यजुर्वेद में गद्य भी है, सामवेद में नहीं, क्योंकि वह गाने की चीज है । यजुर्वेद के समय में ऋग्वेद के समय की ऐसी मनोहारणी वाक्यरचना कम होगई थी । उस समय स्तुति प्रार्थना की तरफ ऋषियों का ध्यान कम था । यज्ञसंबन्धी सूक्ष्म सूक्ष्म नियम बनाकर उसीके द्वारा अपने सौख्यसाधन की तरफ उनका ध्यान अधिक था । इसीसे जरा जरा सी बातों के लिए भी उन्हें विधि विधान बनाने पड़े थे । लौकिक और पारलौकिक सुख प्राप्ति की कुञ्जी यज्ञही समझा गया था" ।
" विनायक विश्वनाथ वेदविख्यात "
पाठक ! वेद विख्यात जी के इस लेख से वेदों के संबंध में आप लोग अच्छी तौर से समझ सकते हैं । वेद ईश्वरकृत अथवा अपौरुषेय नहीं हैं किन्तु मनुष्यनिर्मित हैं वेदविख्यात जी ने भी यही मत प्रकट किया है और और भी इस बात के अनेक प्रमाण मिल सकते हैं ।
वेद किसके कहे हुए हैं इस संबंध में वैदिकों का भी एक मत नहीं है। कई वेदों को अनादि कहते हैं और कई ब्रह्मा के मुख से प्रकट हुए मानते हैं। कई कहते हैं कि ब्रह्मा के मुखरूप ब्राह्मण हैं और वेद ब्राह्मणों के मुख से कहे हुए हैं इससे ब्रह्मा के ही कहे हुए मानना चाहिए । ऋग्वेद के मंत्र ७ भाग २ पर लिखा है कि वेद परमेश्वर से आये हैं अतएव सब प्रकार से स्तुतियोग्य हैं। यजुर्वेद में लिखा है कि वेद परमेश्वर' के श्वास से निकले हैं । मनुस्मृति अध्याय १ श्लोक २३ पर लिखा है कि ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, और सूर्य से ऋग्
१. ईश्वर तो अदेह है फिर श्वास देह बिना कहाँ से आया ! क्योंकि श्वास देहधारी के होता है । यदि किसी देहधारी मनुष्य का नाम ईश्वर परमेश्वर हो और उसके भी श्वास से वेदों की उत्पत्ति मानें तो भी असंभाव्य है तो फिर अदेह ईश्वर के श्वास से वेदों की उत्पत्ति माननी नितान्त भ्रमात्मक है ।