Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 100
________________ ( ७८ ) शुरू कर देते हैं । हम पूछते हैं कि आपका जगत्कर्ता ही सब कुछ है तो फिर कर्मों को मानने की क्या गरज़ रही ? - जगत्कर्तामाननेवालों का यह हठ है कि विना किये कुछ भी चीज नहीं होती, इससे जितने पदार्थ हैं उनका करनेवाला कोई होना ही चाहिये । उत्तर में ज्ञात हो कि फिर आपके ईश्वर का भी कर्ता कोई होना चाहिए? क्योंकि आपका ईश्वर विना ही किये कैसे हो गया। यदि कहाजाय कि ईश्वर का कर्ता कोई नहीं है ईश्वर खतः सिद्ध है । संसार का रचयिता ईश्वर मानना ठीक है परंतु ईश्वर का कर्ता मानना ठीक नहीं । हम कहते हैं कि क्यों ठीक नहीं ! आप प्रथम कह चुके हो कि विना किये कुछ भी पदार्थ नहीं बनता इससे तो ईश्वर का भी कर्ता कोई होना उचित है और अब कह रहे हो कि ईश्वर का कर्ता कोई नहीं । जैसे आप ईश्वर का कर्ता कोई नहीं मानते तद्वत् जगत् का कर्ता भी कोई नहीं ऐसा मान लिया जाय तो किसी भी तरह का वाद विवाद का कारण नहीं रह सक्ता, और ईश्वर को सृष्टि का कर्ता नहीं मानने में ईश्वर में भी किसी प्रकार का दोष नहीं आता । परन्तु ईश्वर को सृष्टिकर्ता मानने में अनेक दोष आते हैं यह हम प्रथम दिखा आये हैं इसलिए यहाँ पर लिखने की जरूरत नहीं। कितनेक ईश्वर वादियों का मानना है कि जगत् के उत्पत्ति के प्रथम केवल जगत् का कर्ता एक शुद्ध, बुद्ध, सच्चिदानंद परमेश्वर ही था और दूसरी कुछ भी सामग्री नहीं थी और सव पदार्थ (वस्तु) ईश्वर के ही रचे हुऐ हैं और कितनेक ईश्वरवादी जगत् की उत्पत्ति के प्रथम एक ईश्वर और दूसरा जगत्उत्पन्नकरने की सामग्री (काल-दिशाप्रकृति) और जीव इन तीनों को अनादि माना है इन दोनों ही प्रकार के ईश्वरवादियों के प्रश्नों का उत्तर न्याययुक्त इस ग्रंथ में दिया गया है फिर कोई ईश्वरवादी महाशय तर्क करेगा तो यथासाध्य उत्तर देने में बिलम्ब नहीं किया जायगा। किसी महाशय के मन में इस विषय पर कुछ लिखने की उम्मेद हो तो बेशक कुछ लिखे, गौर किया जायगा।

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