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( ७७ ) . जड है इसलिए स्वतः जीव प्राप्त नहीं कर सक्ता । इससे देनेवाला कोई होना ही चाहिए । कर्म करनेवाला जीव है और फल देनेवाला ईश्वर है।" इसका प्रत्युत्तर यह है कि जैसा जीव करता है वैसा पाता है और यदि देनेवाला ईश्वर है तो प्रथम तो आपसे हमारा यह प्रश्न है कि फिर ईश्वर ने अपनी ओर से क्या दिया ? कुछ भी नहीं । और
आप जो यह हेतु देते हैं कि कर्म जड है इसलिए ईश्वरद्वारा फल मिलता है; सो यह भी भ्रम है । जैसे विषमिश्रित भोजन करने से मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है परंतु बिष जड पदार्थ है उसको यह ज्ञान नहीं है कि जो मुझे खाता है उसकी मृत्यु हो जाती है, तथापि उसको खानेवाला अवश्य मृत्यु के मुख में गिरता है । वैसे ही पौष्टिक पदार्थ मृगाङ्क, मकरध्वज, चंद्रोदय आदि मात्राएँ अथवा घृत, दुग्ध आदि भक्षण करने से मनुष्य का शरीर पुष्ट होता है, परंतु उक्त पदार्थों को सर्वथा यह मालूम नहीं कि हमारे सेवन करने वाले की पुष्टि होती है। अथवा जैसे चुम्बक पत्थर, लोहे का आकर्षण करता है तो पाषाण और लोह दोनों ही जड पदार्थ हैं परन्तु चुम्बक पत्थर में ऐसा ही स्वाभाविक गुण है कि वह लोह को आकर्षण किये बिना नहीं रह सकता । इसमें जैसे प्रेरक का कोई काम नहीं तद्वत् कर्म जड़ होने से क्या हुआ ? कर्म फल भोगने में भी ईश्वर का कोई काम नहीं है कर्मो में यह स्वाभाव है कि शुभ कर्म के कर्ता को शुभ सामग्री और अशुभ कर्म के कर्ता को अशुभ सामग्री स्वतः प्राप्त हो जाती है । याद रहे द्रव्य अपना परिणाम नहीं छोड़ता । कर्मों को जड कहकर शुभ कर्मों का फल देनेवाला ईश्वर सिद्ध करना चाहे तो नहीं हो सकता। जीव शुभाशुभ परिणाम के उपयोग से शुभाशुभ कर्म आकर्षण करके आत्मा को लोलुपीभूत करता है यह अनादि अनंत काल की स्थिति है । सव वस्तुओं का स्व व स्वरूप में अस्तित्व है इसमें ईश्वर का कोई काम नहीं । जगत का कर्ता ईश्वर है इस बात को स्वीकार करनेवाले यह कहा करते हैं कि कर्ता भोक्ता एक ईश्वर है, दूसरा कोई नहीं और जब इस बात में पक्ष निर्बल होता देखते हैं तो शुभाशुभ कमों का फल ईश्वर देता है ऐसा कहना