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और जैन दर्शन के प्रन्थों का दीर्घ दृष्टि से अवलोकन करो जिससे आपको सच्ची स्वतन्त्रता प्राप्ति करने का मार्ग मिले ।
अन्त में देशी विदेशी स्वधर्मी परधर्मी सब मित्रों से इस ग्रन्थ को आदि से अन्त तक पढ़ने की प्रार्थना करके मैं इस ग्रंथ को यहाँ ही पूर्ण करता हूँ ।
शुभानि भूयासुर्वर्द्धमानानि ।
शम्
संवत् १९६५ कार्तिकवदी
षष्ठी गुरुवार आकोला (बराड)
जैन श्वेताम्बर मन्दिर ताजना पेठ
सज्जन कृपाभिलाषी
यति बालचन्द्र