Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 105
________________ ( ८३ ) तीन तत्वों को जो पूर्ण जानकार दृढ श्रद्धावान् हो वही विशुद्ध जैनी कहा जा सकता है । जिस देव में अठारह दोष हों अथवा अठारह में से एक भी दोष मिले उसे शुद्ध देव नहीं जानना । और जो गुरु कनक कामिनी का लोलुपी हो वह सुगुरु नहीं हो सकता और जो धर्म हिंसाप्रचुर अज्ञानियों द्वारा प्रणीत हो वह शुद्ध धर्म नहीं हो सकता । इन तीन तत्त्वों का जैन शास्त्रों में खूब विचार किया गया है। जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, बंध, निर्जरा और मोक्ष ये नव पदार्थ (तत्व) माने हैं । धर्मास्तिकाय - अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय - पुद्गल और जीव यह षट् द्रव्य हैं । अस्तित्व, वस्तुत्व द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरु लघुत्व, प्रदेशत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्त्तत्व, और अमूर्त्तत्व, यह दश द्रव्य के सामान्य गुण हैं । ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहनाहेतुत्व, वर्त्तनाहेतुत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्त्तत्व और अमूर्त्तत्व यह द्रव्य के सोलह विशेष गुण हैं । अस्ति, नास्ति, नित्य, अनित्य, एक, अनेक, भेद, अभेद, भव्य, अभव्य और परम यह ग्यारह द्रव्य के सामान्य स्वभाव हैं । चेतन, अचेतन, मूर्त्त, अमूर्त्त, एक प्रदेश, अनेक प्रदेश, विभावस्वभाव, शुद्ध स्वभाव, अशुद्ध स्वभाव और उपचरित स्वभाव यह दश द्रव्य के विशेष स्वभाव हैं । वस्तु के एक एक धर्म पर सप्तभंगी की रचना जानने योग्य है । स्याद्वाद' न्याय से जिस वस्तु की परीक्षा की जाय और वह ठीक परिक्षा में उतरे वह सत्य है | सभी वस्तु उत्पत्ति, व्यय और ध्रौव्य गुण से युक्त है । द्रव्य की अपेक्षा नित्य, और पर्याय की अपेक्षा अनित्य है । वस्तु स्वरूप करके अस्तित्व में है और पर रूप करके अस्तित्व में नहीं है, अर्थात् पर रूप करके अस्ति नहीं और स्वरूप करके नास्ति नहीं । प्रत्यक्ष और परोक्ष दो प्रमाण माने हैं। तीर्थकरों ने एक श्रावक (गृहस्थ ) धर्म और दूसरा यति धर्म कहा है | श्रावकों के लिये दशविध धर्म इस प्रकार 1 जाननाः १ स्यादस्ति, २ स्यान्नास्ति, ३ स्यादस्ति नास्ति, ४ स्यादवक्तव्य, ५ स्यादस्ति अवक्तव्य, ६ स्यान्नास्ति अवक्तव्य, ७ स्यादस्ति नास्ति अवक्तव्य । यह सप्तभंगी अर्थात् स्याद्वादन्याय की मुख्य बातें हैं । -

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