Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 57
________________ स्वाति स्म तेषां रुधिरैत्रिकालं, ... सोऽप्युच्यतेऽन्यैर्मधुसूदनांशः" ॥१॥ भावार्थ-परशुराम ने अपनी माताजी (रेणुका) का मस्तक अपने हाथ से छेदन किया, और क्षत्रियों को मारकर पृथिवी निःक्षत्रिया की, और उनके रुधिर से दिन में तीन तीन बार स्नान किया। ऐसे घृणाकारक कृत्य करनेवालों को सर्वशक्तिमान ईश्वरीयावतार कहना बड़ेही दुःख की बात है क्या यह निर्दयता नहीं है ? परन्तु यह बात वैदिकों के स्वभाव ही में दाखिल हो गई है क्योंकि ये लोग हिंसाको उत्तम मानते हैं इसीलिए यागादि में ये बड़ी भारी हिंसा करते हैं। कई वैदिक यागादि में जो इस समय हिंसा नहीं करते हैं, यह जैनधर्म का ही प्रभाव समझना चाहिये और इस बात को वैदिक विद्वान् कबूल भी अब थोड़ा वैदिक ऋषियों का भी हाल सुन लीजिए :- . "पराशरः कामवशान्न कन्या, दिवा निषेवे यमुनाजलस्थः। .. व्यासस्तु बन्धोर्दयिताद्वयस्य, वैधव्यविध्वंसकरो न जज्ञे" ॥१॥ भावार्थ-पराशर ऋषि, यमुना नदी में धीवर की कुमारी कन्या में आसक्त हो गये । क्या पराशर सरीखे नामी ऋषि को यह कार्य करना उचित था ! क्या ऋषियों को ऐसा काम करना अनुचित नहीं है ? और उनके पुत्र व्यास जी ने अपने भ्राताओं (चित्राङ्गद, चित्रवीर्य ) की स्त्रियों का वैधव्य विध्वंस किया, अब जरा इस ओर ख्याल कीजिए! क्या इन कामों को आपलोग अयोग्य नहीं कहेंगे? . विद्वान लोग तो ऐसे काम करनेवालों को बेशक बुरा ही कहेंगे ! ऐसेही ईश्वर को जगत्कर्ता-माननेवाले वैदिकलोगों के और भी ऋषियों की कथाओं को तरफ ख्याल कीजिये । इस समय भी कितनेक

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