Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 84
________________ ( ६५ ) I आपलोग प्रसिद्ध वैदिक विद्वान श्रीमान् राममिश्र शास्त्री जी के व्याख्यान पर से. भली भाँति जान सक्ते हैं कि जैनमत आस्तिक है या नास्तिक ? और जैन दर्शन का स्याद्वाद न्याय कितना पुख्त है यह भी आप अच्छी तौर से समझ सक्ते हैं । जैन श्वेताम्बर कानफरन्स के बड़ोदे का अधिवेशन तारीख ३० । १२ । १९०४ ई० में हुआ था उस वख्त जगत्प्रसिद्ध देशभक्त माननीय पण्डित श्रीयुत बालगङ्गाधर तिलक महोदय ने अपनी वक्तृता में कहा था कि " ब्राह्मणों और हिन्दू धर्म में मांस भक्षण और मदिरा पान बन्द हुआ यह भी जैनधर्म का ही प्रताप है " इत्यादि बहुत कुछ कहा था । देखिए ! जैन दर्शन की तारीफ अन्यमतों के बड़े बड़े विद्वानगण कर रहे हैं । सच्ची बड़ाई वह है कि जिसकी तारीफ दूसरे लोग करें। जैन दर्शन की प्रशंसा अनेक पूर्वदेशीय और पाश्चात्य विद्वानों ने की है और करते ही चले जाते हैं विशेष लिखने की कोई आवश्यकता नहीं । जैन दर्शन के तत्त्व सब दर्शनों से अधिक श्रेष्ठ हैं, इससे विश्वास करने योग्य है । जैन दर्शन जगत्का कर्ता ईश्वर को नहीं मानता और यह बात बहुत ठीक है । जगत् ईश्वर का रचा हुआ मानने वाले वेदादि धर्मावलम्बियों से जब पूछा जाता है कि ईश्वर को जगत्का कर्ता आपलोग मानते हैं इस संबंध में आप के पास क्या दृढ़ प्रमाण है ? तो प्रत्युत्तर में जोर देकर कहते हैं कि इस बात का साक्षी वेद है । और वेद ईश्वर के रचे हुए हैं इसलिए विश्वास करने के योग्य हैं इससे बढ़ कर क्या प्रमाण चाहिए ? | वेद पौरुषेय है या अपौरुषेय, अथवा मनुष्यनिर्मित ? समार्गदर्शक है या नहीं ? और विश्वास करने योग्य है या अयोग्य? अब हमे इन उक्त बातों पर परामर्श करना अवश्य है । परन्तु हमारे ओर से लिखने की भी कोई जरूरत नहीं मालूम होती । क्योंकि कितनेक वेद मतानुयायी विद्वान् महाशयही वेदों को क्या समझ रहे १ जैन धर्म के प्रताप से ब्राह्मण और हिन्दू धर्म में मांस भक्षण और मदिरा पान बंद हुआ इस उपकार के बदले में कितनेक मनुष्य जैनों को नास्तिक किंवानास्तिकों की श्रेणी में कहने का साहस करते हैं धन्य है ऐसे साहसियों को ?

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