Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 91
________________ "वेदों के व्याख्यान अर्थात् टीका का नाम "ब्राह्मण'' है। बहुत लोग संहिता और ब्राह्मण दोनों की “वेद" संज्ञा मानते हैं । वे कात्यायन के “ मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् " इस वाक्य का प्रमाण देते हैं । परन्तु यह बात विचारणीय है । ब्राह्मण-ग्रन्थों में वैदिक मन्त्रों का मतलब समझाया गया है । और भी कितनीही बातें हैं । अतएव उनकी रचना वेदों के साथही हुई नहीं मानी जा सकती। वैदिक मन्त्रों के आशय समझने में जब कठिनाई पड़ने लगी होगी तब "ब्राह्मण" बनाये गये होंगे, पहले नहीं। ऋग्वेद के ब्राह्मणों में विशेष करके होता के कामों का विधान है और यजुर्वेद के ब्राह्मणों में अर्ध्वयु के और सामवेद के ब्राह्मणों में उद्गाता के कामों का विधान है । यज्ञसंबन्धी बातों को खूब समझाने और यज्ञ कार्य का सम्बन्ध वैदिक मन्त्रों से अच्छी तरह बतलानेही के लिये ब्राह्मणों की सृष्टि हुई है। संहिता पद्य में है, ब्राह्मण गद्य में। गद्य के बीच में कहीं कहीं "गाथा" नामक पद्यमी ब्राह्मणों में है।" "ब्राह्मण-प्रन्थों के अन्त में "आरण्यक" हैं । जो घर छोड़ कर बन चले गये हैं, अतएव जिन्होंने यज्ञ करना बन्द करदिया है, ये "आरण्यक" ग्रन्थ उन्हींके लिए हैं। उन्हीं के काम की बातें इनमें हैं। "आरण्यक" से उतरकर उपनिषद् हैं । वे सब ज्ञानकाण्ड के अन्तर्गत हैं।" "यज्ञ सम्बन्धी क्रियाकलाप अर्थात् कर्मकाण्ड का विषय जब बहुत पेचीदा होगया और साधारण आदमी ब्राह्मण ग्रन्थों का ठीक ठीक मतलब समझने अथवा तदनुसार क्रिया निर्वाह करने में असमर्थ होने लगे तब श्रौत, गृह्य और धर्म सूत्रों की उत्पत्ति हुई। इन ग्रन्थों में सब बातें थोड़े में समझाई गई हैं । श्रौत-सूत्रों में श्रुति-(यहां 'ब्राह्मणों' से मतलब हैं ) में उल्लिखित बड़े बड़े यज्ञों के विधान आदि हैं; गृह्य-सूत्रों में जनन, मरण, विवाह आदि संस्कारों की विधि हैं; और धर्म-सूत्रों में धर्म-सम्बन्धी, अर्थात् धर्मशास्त्र या स्मृतियों की बातें हैं" "इनके सिवा “ अनुक्रमणी" नामक ग्रन्थों की गिनती भी वैदिकसाहित्य में की जाती है । इन ग्रन्थों में वेदों के पाठ आदि का क्रम

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