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( ६१ ) तो दो की लड़ाई में तीसरे की पौ बारा है याने जैन सिद्धान्त सिद्ध हो गया, क्योंकि वे कहते हैं कि वस्तु अनेकान्त है उसे किसी प्रकार से भावरूप कहते हैं और किसी रीति पर अभावरूप भी कह सके हैं । किसी रीति पर कोई आत्मा को ज्ञानस्वरूप कहते हैं और कोई ज्ञानाधार स्वरूप बोलते हैं तो बस कहनाही क्या अनेकान्त बाद ने पद पाया । किसी रीति पर कोई ज्ञान को द्रव्यस्वरूप मानते हैं और कोई बादी गुणस्वरूप । इसी रीति पर कोई जगत् को भाव स्वरूप कहते हैं और कोई शून्य स्वरूप तब तो अनेकान्तवाद अनायास सिद्ध हो गया।
कोई कहते हैं कि घटादि द्रव्य हैं और उनमें रूप स्पर्शादि गुण हैं। परंतु दूसरी तरफ के वादी कहते हैं कि द्रव्य कोई चीज नहीं है वह तो गुणसमुदाय स्वरूप है । रूप, स्पर्श, संख्या, परिमाण इत्यादि का समुदाय ही तो घट है इसे छोड़ कर घट कौन वस्तु है । कोई कहते हैं आकाश नामक शब्दजनक एक निरवयव द्रव्य है । परंतु अन्य वादी कहते हैं कि वह तो शून्य है। ___सजनो ! कहाँ तक कहा जाय कुछ वादियों का कहना है कि गुरुत्व गुण है । परन्तु दूसरी तरफ़ वादी लोगों का कहना है कि गुरुत्व कोई चीज नहीं है पृथ्वी में जो आकर्षण शक्ति है उसे न जान कर लोगों ने गुरुत्व नामक गुण मान लिया है।
मित हित वाक्य पथ्य है, उसीसे ज्ञान होता है वाग्जाल का कोई प्रयोजन नहीं है इस हेतु यह विषय यहाँ ही छोड़ दिया जाता है और आशा की जाती है कि जैन मत के क्रमिक व्याख्यान दिये जायेंगे। .. शुभानि भूयामुर्वर्द्धपानानि ।
शम् खामी राममिश्र शास्त्री-अगस्त्याश्रमाश्रम-काशी.
मि० पौष शुक्ल प्रतिपत्-बुधवार सं० १९६२