________________
( ६६ ) " अर्थ पश्यन्तु ऋषयो देवताश्छन्दोभिरभ्यधावन् । जैसे पीछे के संस्कृत-कवियों ने गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु, सूर्य आदि की स्तुतियों से पूर्ण स्तोत्र बनाये हैं वैसेही अग्नि, सोम, वरुण, सविता इन्द्र आदि की स्तुतियों से परिपूर्ण स्तोत्र वैदिक ऋषियों के बनाये हुए हैं। यहां पर कोई यह कह सकता है कि वैदिक ऋषि मन्त्रद्रष्टा थे। उन्होंने योगबल से ईश्वर से प्रत्यादेश की तरह वैदिक मन्त्र प्राप्त किये हैं। यदि यह बात है तो इन सूक्तों में इन ऋषियों की निज की दशा का वर्णन कैसे आया ? ये मंत्र इनकी अवस्था के ज्ञापक कैसे हुए ? ऋग्वेद का कोई ऋषि कुँए में गिरजाने पर उसीके भीतर पड़े पड़े वर्ग और पृथिवी आदि की स्तुति कर रहा है। कोई इन्द्र से कह रहा है कि आप हमारे शत्रुओं का संहार कीजिये। कोई सविता से प्रार्थना कर रहा है कि हमारी बुद्धि को बढ़ाइए । कोई बहुत सी गाएं मांग रहा है, कोई बहुत से पुत्र । कोई पेड़, सर्प, अरण्यानी, हल और दुन्दुभी पर मन्त्र रचना कर रहा है । कोई नदियों को भलाबुरा कहरहा है कि ये हमें आगे बढ़ने में बाधा डालती हैं । कहीं मांस का उल्लेख है, कहीं सुरा का है, कहीं छूत __ १ यह बात महम्मदी कुरान के लिये और इसाई अपनी बाईबल के लिये भी कहते हैं किसका कहना सत्य है और किसका झूठ है और इस बारे में तीनोंही के समीप क्या प्रमाण है ?
२ जिन वेदों में अथवा वेदाङ्ग में दारू पीने का, मांस काम में लेने का, चूत को उत्तेजन देने का, दिल्लगी ' करने का, भला बुरा कहने का, देवताओं से स्वार्थ के लिये प्रार्थना करने का, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्त्रीवशीकरण द्यूत में जीत होने इत्यादि कुकार्यों के करने का मंत्र तथा वर्णन है और ऐसा अनीति का जिन वेदों में उपदेश है उन घृणित शास्त्रों को कौन बुद्धिमान् अपौरुषेय अथवा विश्वास करने योग्य और सद्मार्गदर्शक कह सकता है ? कई लोगों की यह राय है कि खास वेदों में ऐसी अनुचित बातें नहीं हैं किन्तु मांस मदिरादि के सेवन करने वालों ने ब्राह्मणादि वेदाङ्ग शास्त्रों में पीछे से मिलादी हैं, अस्तु । किन्तु वेद अथवा वेदाङ्ग शास्त्रों में यह बातें देखने में आती हैं तभी तो कई विद्वान् ऐसा लिखते हैं।
'ग्रन्थकर्ता