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( ३६ ) वैदिक जो पुनर्लन (नियोग) के पक्षपाती हैं, वह वेद व्यासभी की ही कृपा का फल मानना चाहिए। और जो जो वैदिक मित्रों ने पुनर्लग्न का निषेध किया है उनको शतशः धन्यवाद देना चाहिए क्यों कि वे लोक कुछ सत्यपाही बने हैं। ..::.. .... पाठक ! आप लोग सर्वशक्तिमान जगस्कर्ता ईश्वर को माननेवाले महाशयों के नेताओं की आख्यायिकाओं की ओर विचार करें। हां, इतना हम अवश्य कह सकते हैं कि श्री कृष्णचन्द्रजी,रामचन्द्रजी और लक्ष्मणजी अत्यन्त प्रभावशाली राजा हुए और नीतिमान् , श्रद्धावान् तथा आस्तिक थे, परंतु इनको सर्व शक्तिमान ईश्वरीयावतार कहना उनके भक्तों की इच्छा पर निर्भर है, ब्रह्मा, विष्णु, शिव को सृष्टि के कर्ता, हर्ता मानना उनके अनुयायी जनों की श्रद्धामात्र है, वैदिक ऋषियों को दयावान् अथवा अहिंसा के पक्षपाती मानना उनके प्रेमियों के मन की बात है, परन्तु युक्ति तथा प्रमाण और आचरणों से प्रतीत होता है कि उपर्युक्त बातें उनमें नहीं थीं ?
ईशामसीह का यहूद देश में उत्पन्न होना, और शूली पर चढ़ाकर शत्रुओं द्वारा उनका प्राण लेना यह ऐतिहासिक बात है; परंतु ईश्वर का पुत्र कहना और संसार का त्राणकारक मानना अर्थात् मंसार की भलाई के लिये शूली पर चढ़ना यह ईशाई लोगों के निश्चय की बात है, परन्तु अन्य मतावलम्बी महाशय इस बात को विना प्रमाण सत्य नहीं मान सकते । इसी तरह मुसल्मानलोगों के पैगम्बर (नबी) महम्मद साहेब का मके में उत्पन्न होना और मदीने में परलोक (मृत्यु) होना यह भी एक ऐतिहासिक बात है, परन्तु अल्लाह के द्वारा इनके लिये आसमान से कुरान शरीफ़ की किताब का भेजना और उस किताब में लिखी बातों पर विश्वास लाना यह मुसल्मानों के ऐतकाद की बात है, परंतु सत्यवाही बुद्धिमान मनुष्य सत्यासत्य का विचार कर सकते हैं। ईशाई और मुसल्मानी किताबों के बारे में मैं इस जगह विशेष लिखना इसलिए ठीक नहीं समझता कि इसी प्रन्थ के दूसरें या तीसरे भाग में इन मतों की अवश्य समीक्षा करना है, और यह अन्य किसी पकधर्म को अच्छा और दूसरे को बुरा कहने