Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 80
________________ ( ५८ ) कर द्वेष करना यह अज्ञ जनों का कार्य है सबसे अधिक वे अज्ञ हैं कि जो जैन सम्प्रदाय सिद्ध मेलो में विघ्नडालकर पापभागी होते हैं "। ।... आगे फिर लिखते हैं कि "सजनो ! ज्ञान, वैराग्य, शान्ति, झान्ति, अदम्भ, अनीर्षा, अक्रोध, अमात्सर्य अलोलुपता, शम, दम, अहिंसा, समदृष्टिता इत्यादि गुणों में एकेक गुण ऐसा है कि जहाँ वह पाया जाय वहाँ पर बुद्धिमान पूजा करने लगते हैं तब तो जहाँ ये पूर्वोक्त सब गुण निरतिशयसीम होकर विराजमान हैं उनकी पूजा न करना अथवा गुणपूजकों की पूजा में बाधा डालना क्या इनसानियत का कार्य है ?" फिर आगे लिखते हैं कि "सज्जनो ! अज्ञता ऐसी चीज है उसके कारण अनेक बेर अनेक लोक बिना जाने बूझे दूसरे की निन्दा कर बैठते हैं । थोड़ेही दिन की बात है कि किसी नये मजहबी ने जोसमें आकर जैनमत में मिथ्या आरोप किये और अन्त में हानि उठाई । मैं आपको कहां तक कहूँ बड़े बड़े नामी आचार्यों ने अपने प्रन्थों में जो जैनमत का खण्डन किया है वह ऐसा किया है कि जिसे सुन देख कर हँसी आती है। ____ मैं आप के सन्मुख आगे चलकर स्याद्वाद का रहस्य कहूँगा तब आप अवश्य जान जाँयगे कि वह एक अभेद्य किला' है उसके अन्दर मायामय गोले नहीं प्रवेश कर सकते । __आगे फिर लिखते हैं कि "सजनो! एक दिन वह था कि जैन सम्प्रदाय के आचार्यों के हुंकार से दशो दिशाएं गूंज उठती थीं, एक समय की वार्ता है कि हमारे ही ( याने वैदिक सम्प्रदायी वैष्णव ने) किसी साम्प्रदायिक ने हेमचंद्राचार्य जी को देखकर कहा__'आगतो हेमगोपालो, दण्डकम्बलमुहहन् । बस तो फिर क्या था उन्होंने मन्दमुसकान के साथ उत्तर दिया कि. १ किला-दुर्ग-गढ - कोट-इत्यादिक कहते हैं।

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