Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 64
________________ भक्त सज्जन; संबन्धी कुटुम्ब परिवार को दुःखी त्यागकर परलोक चले जाते हैं। यदि आपका प्रभु भक्तवत्सल होता तो भक्तों को और भक्तों के परिवार को क्यों दुःखी होने देता? क्या भक्तों की आयु अधिक कर देने की शक्ति सर्वशक्तिमान्-भक्तवत्सल ईश्वर में नहीं है ? यदि है तो दुःखी क्यों ? इससे यही प्रतीत होता है कि आपका ईश्वर भक्त वत्सल नहीं है । जब जगत् का कर्ताही ईश्वर सिद्ध नहीं होसक्ता तो फिर दूसरी बातें कहाँ से सिद्ध हो सकेंगी। ईश्वर को जगत् का कर्ता माननेवालों की यह भी समझ है कि सब पदार्थों का अधिष्ठान ईश्वर है, और ईश्वरीय इच्छा से सब कृत्याकृत्य होते हैं तो घट पट क्यों नहीं होजाता ! जैसे घट का कारण मृत्तिकापिंड है इसलिये मृत्तिकापिंड से घटोत्पत्ति होती है परंतु मृत्तिकापिंड से पटादिक कार्य नहीं होसकते । वैसे ही पट का कारण तन्तु है इससे पटोत्पत्ति होती है परंतु तन्तु से घटादि पदार्थ कभी नहीं बन सकते । यदि आप इसबात को स्वीकार नहीं करेंगे तो कारण से कार्योत्पत्ति होना मिथ्या कह देना चाहिए ! यदि आपको जगन्नियन्ता ईश्वर पर इतना पक्षपात है तो आपका अधिष्ठान ईश्वर, घट को पट और पट को घट क्यों नहीं करदिया करता ? जो लोग ईश्वर को जगत् का कारण अधिष्ठान बतलाते हैं वह उनकी भूल है । जगत् का कारण ईश्वर किसी युक्ति या प्रमाण से सिद्ध नहीं होसक्ता । अतएव सिद्ध हुआ कि ईश्वर अधिष्ठान नहीं है और ईश्वरीय इच्छा से कृत्याकृत्य मानना युक्ति या प्रमाण से नहीं सिद्ध होता । ___ सृष्टि को ईश्वररचित माननेवाले यह भी मानते हैं कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जंघाओ से वैश्य और पावों से शुद्ध उत्पन्न हुए । मुख भुजा जंघाओं से उत्पन्न होने के कारण इन तीनों की द्विज संज्ञा है और शूद्र पावों से उत्पन्न हुआ इस से द्विज नहीं है। अर्थात् शूद्र नीची जाति की संज्ञा है । देखिए ! महाशय ! यह कैसा पूर्वापर विरुद्ध है ! एक जगह कहना कि ईश्वर ने सभी पदार्थ की रचना की है और दूसरी जगह कहना कि ब्रह्माजी ने ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य

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