Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 33
________________ वहां द्वेष भी है इससे आपका ईश्वर; रागी, द्वेषी कहा जायगा और राग, द्वेष होना ईश्वर के लिए दूषण है अतएव उस ईश्वर को कोई भी बुद्धिमान नहीं कह सक्ता, यदि कहोगे कि कृपा से सृष्टि निर्माण की है तो संपूर्ण जीव जन्तुओं को सुखी बनाना था ? संसार में दुःख, दुर्गति, दरिद्रता; सूकर, मार्जारादिक दुष्ट योनि, जन्म, मरण, जरा, क्लेश इत्यादि अनेक प्रकार के दुःखों से पीड़ित असंख्यात प्राणिगण दिखाई देते हैं बतलाइये ! आप के कृपालु ईश्वर ने जीवों को दुःखी क्यों रचा ? इससे आप के जगत्कर्ता ईश्वर को कृपालु कहना नितान्त असत्य है यदि आप ऐसा कहोगे कि जिस जीव के जैसे शुभाशुभ कर्म थे तदनुसार वेरचे गये तो इस कथन से आप के जगन्नियन्ता की स्वतन्त्रता नष्ट हो चुकी क्योंकि जैसे हम तुम कर्माधीन कार्य करते हैं तैसे ईश्वर भी कर्मवस हुआ। तो अब कहिये ईश्वर ने कर्म विना स्वतः क्या रचा? यदि जैसा कर्म जिसका था तैसा उसने रच दिया कहोगे तो आप लोगों का जो यह कहना है कि "संपूर्ण कार्य ईश्वराधीन ही होते हैं" इस जगह पर कर्माधीन होते हैं यह कहना होगा । तात्पर्य यह है कि ईश्वराधीन कुछ भी नहीं है और ईश्वर को भी कर्माधीनही मानना पड़ेगा। और सुख दुःखादि तथा जगत् की विचित्रता कर्मजन्य है तो फिर आप के विश्वकर्मा शिखंडी ने क्या विश्व की रचना की ! यदि आप कहोगे कि उसकी रचना समझ में नहीं आसक्ती है तो क्या आपने विनाही समझे विश्वका मान लिया ? और जो आप के शास्त्रों में सृष्टि निर्माण के लिये जितना लिखा गया है वह विना समझे ही लिखा गया है ? वेदों मे सृष्टिरचना का क्रम जो है वह हम प्रथम लिख ही चुके हैं और उन मंत्रों से सिद्ध होता है कि वेद ईयरमणीत नहीं हैं और न वेदों में सृष्टि के लिये एक मत है, धन्य है आप की मान्यता को! ____ यदि थोड़ी देर के लिये ऐसा मान लिया जाय कि जगत् काकर्ता ईश्वर है तो प्रथम यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि ईश्वर देहयारी है या अदेह धारी ? यदि कहा जाय कि देहधारी है, तो देहवारी के पुण्य पाप भी होना संभव है क्योंकि पुण्य पाप विना शरीर (पुद्गल) नहीं बनता, यदि

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