________________
- और ब्रह्माजी की ओर देखा जाय तो विदित होता है कि जिस समय ब्रह्मा के समीप से राक्षस बेदों को चोरा ले गए उस समय ब्रह्मा की सर्वज्ञता कहाँ गई थी. ? यदि ब्रह्मा सर्वज्ञ होते तो वेदों की चोरी कैसे होने देते ? उक्त बातों की ओर निरीक्षण करने से यही प्रतीत होता. है कि ब्रह्मा-विष्णु-शिव सर्वज्ञ नहीं हो सकते किन्तु उन्हें असर्वज्ञ ही कहना होगा। ___कितने महाशय यह फरमाते हैं कि "ईश्वर ने जल में अपना वीर्य
छोड़ा" उसका अंडा हुआ, उस अंडे के फिर दो विभाग हुए, एक विभाग का नाम पृथिवी और दूसरे का नाम स्वर्गपड़ा" देखिये! जगत्कर्ता माननेवालों की लीला, कि जब ईश्वर के वीर्य से पृथिवी आदि पदार्थ उत्पन्न हुए तब तो ईश्वर के शरीर भी होना उचित है क्योंकि विना शरीर के वीर्य नहीं हो सक्ता और जो ईश्वर का शरीर सिद्ध हो जाय तो ईश्वर को अदेह निराकार कहना झूठा हुआ यह कितना पूर्वापर विरुद्ध है । जगत्कर्ता ईश्वर मानने वालों में भी एक मत नहीं है, कोई ईश्वरवादी कहता है कि हमारा ईश्वर अवतार धारण करता है और अन्य कहता है कि ईश्वर अवतार धारण नहीं करता किन्तु विना शरीर ही सव कार्य कर सकता है । इन बातों को कहाँ तक लिखें यदि ईश्वरवादियों के मन्तव्य का परस्पर विरोध लिखने बैठे तो एक बड़ा ग्रन्थ हो जाय इसीलिए उनकी तर्कों का ही किंचित् परामर्श करना युक्त समझा गया है। ___ कोई ईश्वरवादी कहते हैं कि ईश्वर ही जगत् में व्याप्त होकर क्रीडा कर रहा है । और कितनेक कहते हैं कि मनुष्यों को जब उद्धार होने का मार्ग नहीं मिला इसलिये वे रोदन करने लगे तब करुणानिधान विश्वपिता उनका रोदन सुनकर एक ऋषि के हृदय में प्रकट हुए और वह ऋषि ईश्वरीय शक्ति में बलवान् होकर खड़ा हुआ और विश्ववासियों को कहने लगा, हे विश्ववासीजनों ! श्रवण करो ! मैंने उस अनादि पुरातन परमपुरुष को जाना है। आदित्य के समान तो उसका वर्ण है, और अज्ञानी लोग उसका स्पर्श नहीं कर सक्ते । उसके जानने से तुम