Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 35
________________ कारण रूप पदार्थ क्या था ? अर्थात् सामग्री कहां से लाए कि जिस से सृष्टि निर्माण की जैसे कुम्भकार (कुंभार) घट की रचना मृत्तिका, जल, चक्रादि पदार्थ की सहायता विना नहीं कर सक्ता, तद्वत् जगनियन्ता ईश्वर को सृष्टिनिर्माण करते समय सामग्री अवश्य चाहिये; यदि कोई कहे कि सामग्री तो अनादि से है तो यह सिद्ध हो चुका कि सामग्री ईश्वर रचित नहीं है तो महाशय ! आपके ईश्वर ने क्या रचना की ? और यह कथन भी नितान्त असत्य हो चुका कि “सब से प्रथम ईश्वर ही था, और ईश्वर ने ही संपूर्ण पदार्थों की रचना की है" क्योंकि सामग्री ईश्वरकृत न होने से संपूर्ण पदार्थ ईश्वर के रचे सिद्ध नहीं हो सक्ते, फिर ईश्वर ने क्या रचना की। ___ कितने कहते हैं कि ईश्वर निराकार होकर भी सृष्टि रचना करने की सामर्थ्य न रक्खे तो वह सर्वशक्तिमान् किस रीति से हो सक्ता है ? इसके प्रत्युत्तर में यह कहना चाहिये कि सर्वशक्तिमान् वह कदापि नहीं कहा जा सक्ता, क्योंकि वह स्वतः अपना स्वरूप विगाड़ चराचर में विद्यमान होकर सर्वशक्तिमान बनना चाहे तो नहीं बन सक्ता । सृष्टि रचना करने से ईश्वर में रागद्वेष रूप दोष प्राप्त होते हैं और जिसमें राग द्वेष रूप दोष है उसको सर्वशक्तिमान ईश्वर कहना सर्वथा अयुक्त है। ____ अरूपी ईश्वर से रूपी पदार्थों की उत्पत्ति मानना प्रमाण से बाधित है, क्योंकि आप का अरूपी सर्वशक्तिमान ईश्वर संसार की रचना करते समय सामग्री कहां से और किन हाथों से लाया ? यदि क्षण भर जीव का कर्ता ईश्वर को मान भी लें तो यह विरोध आता है कि कार्य अपने उपादान कारण से भिन्न नहीं हो सक्ता, यदि जीवों का उपादान कारण ईश्वर ही है तो बतलाना होगा कि जीव-ईश्वर की ऐक्यता में अंतर क्यों मानते हो? और ऐश्वरीय इच्छा से जीव प्रतिकूल क्यों दिखलाई पड़ते हैं अर्थात् ईश्वर ने जो जो आज्ञाएं दी हैं उन आज्ञाओं से विपरीत क्यों चलते हैं ? अनेक मनुष्य प्रसंगवस ऐसा उद्गार निकाला करते हैं कि "अमुक मनुष्य को दुर्बुद्धि उत्पन्न होने का

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