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( १२ ) कहा जाय कि ईश्वर देहरहित है तो शारीरक अवयव (हाथ-पाव-मुखनासिका-करण-नेत्रादि) विना किसी प्रकार की भी रचना बन नहीं सक्ती। जो लोग कहते हैं कि “जैसे कुम्भकार ने घट बनाया तद्वत् ईश्वर ने भी सृष्टि की रचना की है। यह उदाहरण ईश्वर की अदेहित्व नष्ट करने वाला है क्योंकि कुम्भकार तो अपने हस्त पादादि अवयव द्वारा कुम्भादिक पात्र की रचना करता है और ईश्वर तो हस्त पादादि अवयवों से रहित है अतएव आप के ईश्वर ने किनः अवयवों के द्वारा सृष्टि निर्माण की है। कुम्भकार का दृष्टान्त तो आपका यहां निरर्थक है क्योंकि देहधारी का दृष्टान्त अदेहधारी पर नहीं लग सक्ता, यदि आप कहोगे कि ईश्वर देह धारण भी कर सक्ता है तो निराकार-नित्य-निरंजन-निर्लेपादि उपमा देना अयुक्त है और देहधारी होने से ईश्वर तुझारे हमारे सदृश मनुष्य होना चाहिए और सब को नेत्रों से दिखाई देना चाहिए।
जिन ईश्वरवादी जनों के हृदय में ऐसी दृढ़ श्रद्धा हो कि जगत्कर्ता ईश्वर ही है उनसे हम प्रश्न करते हैं कि यदि सृष्टि का निर्माणकर्ता ईश्वर है तो उपादान कारण कौन रहा ? यदि कहेंगे कि ऐश्वरीय शक्ति है तो वह शक्ति ईश्वर से भिन्न है अथवा अभिन्न ? यदि अभिन्न है तो बतलाना उचित है कि जड़ है या चेतन ? यदि जड़ है तो बतलाइये वह नित्य है या अनित्य ? यदि भिन्न और नित्य है तो सब से प्रथम, एक नित्य पदार्थ ईश्वर ही है, यह कथन नितान्त असत्य हुआ, यदि कहोगे कि वह शक्ति अनित्य है तो उसका उपादान कारण कौन है ? और यह नियम है कि नित्य से अनित्य वस्तु का उत्पन्न होना सर्वथा असंभव है, यदि शक्ति ईश्वर से अभिन्न है तो ईश्वर और शक्ति यह पृथक् पृथक् नाम से मानना ही वृथा ठहरा और संपूर्ण पदार्थ ईश्वर रूप ही है ऊंच-नीच-राजा-रंक-नरक-स्वर्ग-अधर्म-धर्म सब को ईश्वर ही कहना कोई दोष नहीं और इससे तो आप के ईश्वर ने सृष्टि क्या रची किन्तु अपना स्वरूप ही बिगाड़ लिया, धन्य हैं महाशय! आप का ईश्वर हो तो ऐसा ही हो !
बड़ा आश्चर्य है कि सृष्टि को ईश्वररश्चितस्वीकार करनेवाले अपने हृदय में यह नहीं विचार करते कि जब ईश्वर ने सृष्टि रची उस समय उपादान