Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 26
________________ देवानां नु वयं जाना प्र वोचाम विपन्यया। उक्थेषु शस्यमानेषु यः पश्यादुत्तरे युगे ॥१॥ ब्रह्मणस्पतिरेतासं कार इबाधमत् । देवानां पूर्वे युगेऽसतः सदजायत ॥ २ ॥ देवानां युगे प्रथमेऽसतः सदजायत ॥ तदाशा अन्वजायन्त तदुत्तामपदस्परि ॥३॥ भूर्जज्ञ उत्तानपदो भुव आशा अजायन्त ॥ अदितेर्दक्षो अजायत दक्षाद्वदितिः परि ॥ ४ ॥ अदितिजिनिष्ट दक्ष या दुहिता तव ॥ तां देवा अन्वजायन्त भद्रा अमृतवन्धवः ॥५॥ ऋग्वेदसंहिता मं० १० । सू० ७२ भावार्थ-ब्रह्मणस्पति कार के अनुसार देवताओं के जन्म को करता हुआ, देवताओं के पूर्व युग में असत् से सत् हुआ और सत् से दिशा और तदनन्तर उत्तानपद हुआ और उससे पृथ्वी, पुनः उस पृथ्वी से दिशा (आशा) हुई और अदिति से दक्ष हुआ और दक्ष से अदिति हुई है। हे दक्ष ! तेरी दुहिता अदिति का जन्म हुआ तदनंतर स्तुत्य (स्तुति करने के योग्य) व अमर ऐसे देवों का जन्म हुआ देखिए आगे के मंत्रों में कैसा वर्णन है:ऋतं च सत्यं चाभीद्वात्तपसोऽध्यजायत । ततोरात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः ॥ १॥ समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत । ..अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतोवशी ॥२॥ १ इस अर्थ को हमने अपनी ओर से न करके सायणभाष्यानुसार ही किया है।

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