Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 30
________________ ( ८ ) जानता है किंवा वह भी नहीं जानता यह किसे मालूम ! जगदुत्पत्ति का कारण जानने वाला कोई भी नहीं, और उत्पत्ति क्रम भी प्रत्यक्ष किसी को मालूम नहीं, ऐसा अभिप्राय पूर्वोक्त मंत्र में है। ऋग्वेद में एक जगह पर जो मंत्र लिखा है उस का भी अवलोकन करलीजिए:- तिस्रो द्यावः सवितुर्दा उपस्थाँ एका यमस्य भुवने - विराषाट् । और-रथ्यममृताधितस्थुः॥ ऋग्वेदसंहिता १-३५-६ भावार्थ-"द्युलोक तीन, तिनमें से दो सवित्या के उदरमें और एक यम के भुवन में है । चंद्र तारादि-अमर उसके ऊपर बैठे हुए हैं" ऐसा कह कर आगे उसी ऋचा में ऋषि कह रहा है कि . इह ब्रवीतु य उ तच्चिकेतत् । - भावार्थ-यह सव जिसने जान लिया हो ऐसा कोई हो तो उसे यहां पर आके कहने दो, सारांश यह कि प्रत्यक्ष जाननेवाला (जगदुत्पत्ति का) कोई भी नहीं है ऐसा इस ऋचा में ऋषि का मत है आप लोग इन वेद मंत्रों से भली भाँति जान लिये होंगे कि वेदों में सृष्टिक्रम में पूर्वापर कितना विरोध है और कई ऋषियों का मत तो ऐसा भी दिखाई दे रहा है कि सृष्टि किसी की भी रची हुई नहीं है फिर वेदमतानुयायी किस साहस पर सृष्टि ईश्वरकृत मानते हैं यह मालूम नहीं होता, जो लोग वेदों को अनादि व अपौरुषेय मानते हैं उन्हीं वेदों में ऐसा पूर्वापर विरोध भरा हुआ है फिर बतलाइये ? कौन वेदों की बात पर विश्वास रक्खेगा ? एक स्थान पर तो कहदिया कि असत् से सत् हुआ और सत से दिशा हुई इत्यादि व दूसरे स्थल पर कहदिया कि तप से सत्य इत्यादि फिर एक जगह पर कह दिया कि प्रथम जल था उस के ऊपर पृथ्वी हुई और फिर अन्य स्थल पर लिख दिया कि जल के पीछे वायु व तदनंतर पृथ्वी फिर एक जगह ऐसा भी लिख दिया कि उस आत्मा से आकाश व उस से वायु तदनंतर अग्नि, जल,

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