Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 28
________________ विश्वकर्मा भूत्वा व्यमाई साऽप्रथत सा पृथिव्यभवत् तत्पृथिव्यै पृथिवित्वम् ।। __ तैत्तिरीयसंहिता अष्ट० ७।१।५ उक्त मंत्र में जल के पीछे वायु और तदनन्तर पृथ्वी का उत्पन्न होना इत्यादि क्रम भेद लिखा है अब उपनिषदों में सृष्टिक्रम जो दिया है उसका भी थोड़ा सा अवलोकन कर लीजिए तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः।आकाशाद्वायुः । वायोरग्निः । अग्नेरापः । अयः पृथिवी । पृथिव्या ओषधयः। ओषधीभ्योऽन्नम् । अन्नात्पुरुषः। . तैत्तिरीयोपनिषद् वल्ली २ अनु० १ भावार्थ-उस आत्मा से आकाश और उससे वायु, तदनन्तर अग्नि, जल, पृथ्वी, ओषधी, अन्न, पुरुष इस क्रम से एक से एक उत्पन्न हुए ऐसे ही अन्य बहुत से ग्रंथों में सृष्टिक्रम अनेक रीति से लिखा है परन्तु उक्त सर्व मतों के विरुद्ध व उनसे विचित्र वर्णन तैत्तिरीयब्राझण में एक स्थल पर लिखा है उसको भी देख लीजिएनासदासीनो सदासीत्तदानीम् । नासीद्रजो नो व्योमा परो यत् । किमा वरीवः कुहकस्य शर्मन् । अम्भः किमासीद्गहनं गभीरम्। न मृत्युरमृतं तर्हि न।रात्रिया अह्न आसीत्प्रकेतः। आनीदवातं स्वधया तदेकं । तस्माद्धान्यं न परः किंचनास ।तम आसीत्तमसा गूढमग्रे प्रकेतं। सलिलं सर्वमा इदं। तुच्छेनाभ्वपिहितं यदासीत । तमसस्तन्महिना जायतैकं । कामस्तदने समवर्त्तताधि । मनसो रेतः प्रथमं यदासीत् ।

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