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केतेक आगे रहे ठाढे गहे करमे लाकरी केतेक भये दरवान सब दीन करत इनीविध चाकरी केतेक भये दरवान सब दीन करत इनीविध चाकरी केतेक मीले गुमान तजकर देत अपनो देस ही छत्रपति साह हीमाउ नंद धन साह अकबर कहे
दोहरा एक तो अकबरसाह है सो महिमा सुलतान तीन तो पूज बुलाइया सो अब सुनै वषान ॥ १ ॥
. छंद अरील . एक रोज पातसाहजी बेहें जो(गो)षमें वाजत गाजत माई एक जात है फुनी हां पातसाहजी यों कह्यो क्या बात है थानसींघ सुन वात कहो क्या सोर है छत्रपति वलवंड नही कछु जोर हौ
वरस एकके आदके रोजे जीन कीये .: फुनी हां पातसाहजी यों कहे सो जन क्युं जीये
दोहरा - पातसाहजी यों कहे सुनो थानसींघ वात
उस माइकौं बुलाइयै सो पुछे हम वृतांत ॥ १ ॥
माइ आन षडी रही पूछ पातसाहजी वात ...तुम हमसों साची कहो स तुममें क्या करामात ॥ २ ॥ माइ कहै पातसाह सुनो हम वंदत जीनके पाय सो गुरु जाने वात ही श्रीहीरविजेसुराराय ॥ ३ ॥ .. पातसाह युं कहे सुनो माइ बोल हमारा वात कहो तुम साच पीर कहां रहे तुमारा ॥ ४ ॥
पाय
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BOSTO