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श्रीहस्तिमलजी रचित
जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरि जयंती गायन
तर्ज-वामा दे जाया नीलवरण मनमोहना
सब मिल गुण गावो, हीरविजयसूरि राजका ॥ टेर ॥
पालनपुर है नाम नगरमें, रहते कूरा शेठ । नाथी नामे दंपतीये, अहोनिश धर्म की भेट रे ॥ सब ॥ १ ॥
तसकुक्षीसे अवतरे रे, पुत्र एक गुणवान । हीर नाम उसका दिया रे, यौवन रूप निधानरे ॥ सब ॥ २ ॥
होवे बारह वर्ष कारे, जाणे अथिर संसार । दान विजय गुरुराज केरे, चरणे दीक्षा धाररे ॥ सब ॥ ३ ॥
अनुक्रमे पंडित बने रे, शास्त्र शिरोमणि जाण । 'वाचक पद नाडुलाई में रे, सूरि पद सिरोही जानरे ॥ सब ॥ ४ ॥
दिल्लीपति अकबर एक दिनमें बैठे झरूखामांही ।
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षट्मासी की करे तपस्या, श्राविका चंपा त्यांहिरे ॥ सब ॥
बादशाह बुलवा कर पूछे, तप करो किनके पसाय । चंपा कहे सुणो राजवीरे, देव गुरू पसाय रे ॥ सब ॥ ६॥
गुरू हमारे हीरविजयसूरि, विचरे नगर गंधार । दिल्लीपति अकबर बुलवावे, शुभ देई समाचाररे ॥ सब ॥ ७ ॥
विहार करता आगयेरे, फतेपुर नगर मझार । बादशाह स्वागत करेरे, उत्सवका नहीं पार रे ॥ सब ॥ ८॥
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