Book Title: Hir Swadhyaya Part 02
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 334
________________ श्री विजयदानसूरिनी सज्झाय सकल सुरासुर वंदित पाय गुणमणि भूषण मंडितं काय । . विमल कला गोपी गोविंद जय श्री विजयदानसूरिंद ॥ १ ॥ आनंद जिम शोभित रुप श्रीतपगणनायक नतभूप । विद्याधर जितसुरसुरिंद जय श्री विजयदानसूरिंद ॥ . २ . ॥ हीनाचार निवारण वीर जगतीतल मुनितल मुनिजल कोटीर । रत्नत्रय धारक सुखकंद जय श्री विजयदानसूरिंद ॥ ३ ॥ यशभारभावित लोक अशेष विनयादिक गुण करी विशेष । ... दानव मानव नयनानंद जय श्रीविजयदानसूरिंद ॥ ४ ॥ जनमनवंछित दायक धीर नवचामीकर देह गभीर । यतनिइं पालइ मुनिवरविंद जय श्री विजयदानसूरिंद ॥ ५ ॥ सूधा पंच महाव्रत धरइ सूत्रविचार निरंतर करइ । रिपुजन दूरित परमानंद जय श्री विजयदानसूरिंद ॥ ६ ॥ रिद्धि समिद्धि लहइ जस नामि भविजन पामइ अविचल ठाम । मदविसहर वशकरण नरिंद जय श्री विजयदानसूरिंद ॥ ७ ॥ तुं सुरतरु चिंतामणि समउ नित उठी भवियां तुम नमउ । नरनारीनु तपय अरविंद जय श्री विजयजानसूरिंद ॥ ८ ॥ इम थुण्यु श्री तपगच्छनायक सुकअ दायक सुंदरो । श्री वर्धमान जिनेशशासन महा भार धुरंधरो । प्रतिपउ दिवायर जाव गयणंगणि सकल गुण पूरिउ । श्रीविजयदानसूरिंद गिरूउ सेवक जन सुहंकरो ॥ ९ ॥ इति श्री विजयदानसूरि स्वाध्याय COOPER? BOLO

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