________________
चतूर्थ धूप पूजा दोहा
अकबर दिल में चिंतवे, भारत का सुल्तान । बुलाउं गुरु हीरजी, जैनो का सुल्तान ॥ १ ॥
थानसिंह ओसवाल को, बोले अकबर शाह । बुलावों गुरु हीर को, सुधरे जीवन राह
थानसिंह कहे जहांपनाह, दूर ही है गुरुराज । अकबर कहे पर भी उन्हें बुलावो मय साज ॥ ३॥
॥ २॥
( ढाल - ४ )
(तर्ज - शहीदो के खून का असर देख लेना )
॥
२॥
हीर सूरि को बुलाना पड़ेगा, हमको भी दर्शन दिलाना पड़ेगा ॥ धन गुर्जर है ऐसे गुरु से, वहांसे गुरु को बुलाना पड़ेगा | हीर० ॥ १ ॥ राजा राणी दर्शन पावे, उनकाही दर्शन दिलाना पड़ेगा ॥ हीर० नाम जापसे दुःख विडारे, ऐसे फकीरको यहां लाना पड़ेगा ॥ हीर० ॥ ३ ॥ वहीं से स्हारा देवे चंपा को, उस ओलिया से मिलाना पड़ेगा ॥ हीर० ॥४॥ घर दुनिया को दिल से छोड़े, खुदा का बन्दा बताना पड़ेगा | हीर० ॥ ५॥ सब जीवों की रक्षा चाहे, यही कृपा रस पिलाना पड़ेगा ॥ हीर० ॥ ६ ॥ त्यागी ध्यानी पंडित ज्ञानी, उन्हों का उपदेश सुनाना पड़ेगा ॥ हीर० ॥ ७॥ सब मजहब से वाफ साहिब, उनका भी मजहब सुनाना पड़ेगा ॥ हीर० ॥ ८ ॥ तेरा गुरु है मेरा गुरु है, ठेका भी हो तो तुड़ाना पड़ेगा ॥ हीर० ॥ ९॥ शाह अकबर यों भाव बतावे, हीरे का पाक खिलाना पड़ेगा ॥ हीर० ॥ १० ॥ चारित्र दर्शन गुरु चरण में, ध्यान का धूप जमाना पड़ेगा ॥ हीर० ॥ ११ ॥
काव्यम्-हिंसादि०
मंत्र — ॐ श्रीँ धूपम् समर्पयामि स्वाहा ॥ ४॥
०
२११