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फत्तेहपुर में, उपकेश घर में । है तप भक्ति रे तप से ही सुख पाइये ॥ हीर० ॥ २ ॥
सती शिरोमणि, सद्गुणी रमणी । श्राविका चंपा रे दो मासी तप ठाइये ॥ हीर० ॥ ३ ॥
देव कृपा से, गुरु कृपासे । तप गुण बढते रे कृपा को वारी जाइये ॥ हीर० ॥ ४ ॥
हुई तपस्या, मोक्ष समस्या । आनन्द हेतु रे उच्छव रंग चाहिये ॥ हीर० ॥ ५ ॥
तप की सावरी, जूलूस भारी । बाजित्र बाजे रे जय नारे भी मिलाइये ॥ हीर० ॥६॥ अकबर बोले, लोक हैं भोलें । झूठी तपस्या रे चंपा को कहै आइये ॥ हीर० ॥ ७॥
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पूछे चंपा से, किन की कृपा से । रौजा मनाये रे सच्चा ही बतलाइये ॥ हीर० ॥ ८ ॥ पार्श्व प्रभू की, हीर गुरू की । चम्पा सुनावे रे कृपा का फल पाइये ॥ हीर० ॥ ९ ॥
ठाना शाही ने रे
इन से ही मिलना चाहिये ॥ हीर० ॥ १० ॥
कृपालु नामी हीरजी स्वामी
गुरु चरन में भक्ति सुमन है ॥ चारित्र दर्शन रे कर्मों का गढ ढाइये ॥ हीर० ॥ ११ ॥ काव्यम्-हिंसादि०
मंत्र — ॐ श्रीँ पुष्पाणि समर्पयामि स्वाहा । ३ ।
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