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की। फिर आगरे में शा० गानसिंह कल्याणमल्ल के बनवाये हुए चिंतामणि पार्श्वनाथादि बिबों की प्रतिष्ठा की, सो आज तक आगरे में चिंतामणि पार्श्वनाथ प्रसिद्ध है । पीछे गुरुजी फिर फतेपुर नगर में गए और अकबर बादशाह से मिले । वहाँ एक प्रहर तक धर्मगोष्ठी धर्मोपदेश किया । तब बादशाह कहने लगा, कि मैंने दर्शन के वास्ते उत्कंठित हो कर आप को दूर देश से बुलाया है
और आप हम से कुछ भी नहीं लेते हैं । इस वास्ते आप को जो रूचे सो मेरे से मांगना चाहिये; जिससे मेरे मन का मनोरथ सफल हो । तब सम्यग् विचार करके गुरुजी ने कहा कि तेरे सर्वराज्य में पर्युषणों के आठ दिनों में कोई जानवर न मारा जाय और बंदिजन छोडे जाएं, मैं यह मांगना चाहता हूं । तब बादशाह ने गुरु को निर्लोभि, शांत, दांत, जान करके कहा कि आठ दिन तुम्हारी तर्फ से
और चार दिन मेरी तर्फ से सर्व मिल कर बारह दिन तक अर्थात् भाद्रवा वदि दशमी से लेकर भाद्रवा शुदि छठ तक कोई जानवर न मारा जायेगा । पीछे बादशाह ने सोने के हर्मों से लिखवा करे. छे फरमान गुरुजी को दिए, छे फरमान की व्यक्ति ये हैंअकबर बादशाह के जीवहिंसा निषेधक फरमान
__प्रथम गुर्जरदेश का, दूसरा मालवे देश का, तीसरा अजमेर देश का, चौथा दिल्ली फतेपुर के देश का, पांचवाँ लाहौर मुलतान मंडल का और छठा गुरु के पास रखने का । पूर्वोक्त पांचों देश का साधारण फरमान तो उन उन देशों में भेज के अमारि पटह बजवा दिया । तब तो बादशाह की आज्ञा से जो नहीं भी जानते थे, एसे संर्व आर्या अनार्य कुल मंडप में दयारुपी बेलडी विस्तार को प्राप्त हो गई । और बंदिजन भी बादशाह ने गुरु के पास से उठ कर तत्काल छोड दिये । और एक कोश की झील अर्थात् तालाब में आप जा कर बादशाहने अपने हाथ से नाना जाति के नानादेश वालों ने जो जो जानवर बादशाह को भेट किये हुए थे, वे सर्व छोड दिये । बादशाह से गुरुजी अनेक बार मिले
और अनेक जिनमन्दिर और उपाश्रयों के उपद्रव दूर करे । और जब श्री हीरविजय सूरि अपर देश को जाने लगे, तब बादशाह से एसा फरमान लिखवा ले गए । उसकी नकल मैं इस पुस्तक में लिखता हूं ।
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