________________
३४
श्रीआत्मारामजी महाराज रचित
___जैनतत्त्वाद”
श्रीहीरविजयसूरि संदर्भ ॥ (५८) श्री विजयदानसूरि पट्टे श्री हीरविजयसूरि हुये, जिनका संवत् १५८३ में मार्गशीर्ष शुदि नवमी के दिन प्रह्लादनपुर का वासी ऊके जाती सा० क्रूरा भार्या नाथी गृहे जन्म हुआ । १५९६ में कार्तिक वदि दूज के दिन पत्तन नगर में दीक्षा, १६०७ में नारद पुरी में ऋषभदेव के मंदिर में पंडित पद, १६०८ में माव शुक्लपंचमी के दिन के नारदपुरी में श्रीवरकाणक पार्श्वनाथसनाथे नेमिजिन प्रासाद में वाचक पद, १६१० में सिरोही नगरे सूरि पद । तथा जिनका सौभाग्य, वैराग्य, निस्पृहतादि गुणों को वचन गोचर करने को बृहस्पति भी चतुर नहीं था । तथा श्री स्तंभतीर्थ में जिनके रहने से श्रद्धावन्तों ने एक क्रोड रूपक प्रभावनादि धर्मकृत्यों में खरच किया । तथा जिनके चरण विन्यास के प्रतिपद में दो मोहर
और एक रूपक मोचन किया और जिनके आगे श्रद्धालुओं ने मोतियों से साथिये किये तथा जिनके सिरोही नगर में श्री कंथुनाथ बिंबो की प्रतिष्ठा की तथा नारदपुर में अनेक सहस्त्रबिंबो की प्रतिष्ठा की । तथा जिनके चरण विहारादि में युगप्रधान अतिशय देखने में आता था । तथा अहमदाबाद में लुंके मत का पूज्य ऋषि मेघजी नामा था, उसने अपने लुंके मत को दुर्गति का हेतु जान कर रज की तरह आचार्य पद छोड के पचीस यतियों के साथ सकल राजाधिराज बादशाह श्री अकबर राजा की आज्ञा पूर्वक बादशाही बाजंत्र बजते हुये महामहोत्सव से श्री हीरविजय सूरिजी के पास दीक्षा ली । ऐसा किसी आचार्य के समय में नहीं हुआ था । तथा जिनके उपदेश से अकबर बादशाह ने अपने सर्व राज्य में एक वर्ष में छे महीने तक जीवहिंसा बन्द की, जजिया छुडाया । इसका विशेष स्वरूप देखना हो, तो हीरसौभाग्यकाव्य में से देख लेना । और संक्षेप से यहां भी लिखते हैंCOOROOOO