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अष्टावधानी नंदन विजयजी, सिद्धिचन्द्र गणीराया ।
विवेकहर्ष गणी इन्हो ने, शाही से धर्म कराया । जगतं ० । ९ ।
पड पट्टधर श्री देवसूरि ने, वादी से जय पाया । सुर देवचन्द आदि देवों ने, गुरु का मान बढाया । जगत० । १० ।
बिरूद जहांगीर महातपा यूं, सलीम शाह से पाया । राणा जगतसिंह से भी दया का, चार हुकुम लिखवाया । जगत० । ११ ।
वाचक विनय ने लोक प्रकाश से, सच्चा पंथ बताया । यशोविजयजी वाचक गुरु के, ज्ञान का पार न पाया । जगत० । १२ ।
खरतर पति जिनचन्द्र सूरि ने, जगगुरु का यश गाया । फरमान सप्ताह की अहिंसा का, अकबर शाह से पाया । जगत० । १३ ।
गुरु के नाम से पावे धन सुत, यश सौभाग्य सवा
चारित्र दर्शन गुरु चरणों मैं, भाव नैवेद्य धराया । जगत० । १४ ।
काव्यम्-हिंसादि०
मंत्र — ॐ श्र० नैवेद्यम् समर्पयामि स्वाहा ।
अष्टमी फल पूजा । -दोहा
सोलसो तेपन भादो में, सुदि ग्यारस की रात गुरुजी स्वर्ग में जा बसे, ऊना में प्रख्यात ||
॥ २॥
अग्निदाह के स्थान में, फलें बांझ भी आम सुन कर दुःख दिल में धरे, अकबर अपने धाम अकबर से पाकर जमीन, लाडकी करे वहाँ स्तूप । जो परतिख परचा पूरे, नमे देव नर भूप 11 ३ ॥
आबू पाटण स्थंभना, राजनगर सूरत हैद्राबाद में, बने
जयकार
श्री हीर विहार
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४॥