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इन गुरुओं की करे आशातना, वह जग में हैवान ।
भक्ति नीर से चरणों पूजे, चारित्र दर्शन ज्ञान ॥ आवो० ॥ १७ ॥
काव्यम् – (वसंततिलका) हिंसादिदूषणविनाशयुगप्रधान - श्रीमद्जगद्गुरुसुहीरमुनीश्वराणां उत्पत्तिमृत्युभवदुःखनिवारणाय, भक्त्या प्रणम्य विमलं चरणं यजेहं ॥ १ ॥
मंत्र
ॐ श्रीं सकलसूरिपुरंदरजगत्गुरु भट्टारक श्रीहीरविजयसूरिचरणेभ्यो जलं समर्पयामि स्वाहा ॥ १ ॥
द्वितीय चंदन पूजा
दोहा :
विजयदानसूरि विचरते आये - पाटणपुर । उपदेश से भविजीवको, मार्ग बतावे धूर ॥ १ ॥
गुरुवर की सेवा करे, मणिभद्र महावीर । करे समृद्धि गच्छ मे, काटे संघ की पीर ॥ २ ॥
इस समय गुरुदेव को, हुआ शिष्य का लाभ । तपागच्छ में प्रतिदिन बढे, धर्मलाभ धनलाभ ॥ ३ ॥
ढाल - २
(तर्ज-धन धन वो जगमें नर नार)
धन धन वो जग में नर नार, जो गुरुदेव के गुण को गावें ॥ टेर ॥ पालनपुर भूमिसार, ओसवाल वंश उदार 1
महाजनके घर श्रीकार, प्रल्हादन पासकी पूजा रचावे ॥ धन० ॥ १ ॥
धन सेठजी कूरांशाह, नाथी देवी शुभ चाह I जले जैन धर्मकी राह, धर्म के मर्मको दिलमें ठावे ॥ धन० ॥ २ ॥
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