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________________ २७ श्रीहस्तिमलजी रचित जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरि जयंती गायन तर्ज-वामा दे जाया नीलवरण मनमोहना सब मिल गुण गावो, हीरविजयसूरि राजका ॥ टेर ॥ पालनपुर है नाम नगरमें, रहते कूरा शेठ । नाथी नामे दंपतीये, अहोनिश धर्म की भेट रे ॥ सब ॥ १ ॥ तसकुक्षीसे अवतरे रे, पुत्र एक गुणवान । हीर नाम उसका दिया रे, यौवन रूप निधानरे ॥ सब ॥ २ ॥ होवे बारह वर्ष कारे, जाणे अथिर संसार । दान विजय गुरुराज केरे, चरणे दीक्षा धाररे ॥ सब ॥ ३ ॥ अनुक्रमे पंडित बने रे, शास्त्र शिरोमणि जाण । 'वाचक पद नाडुलाई में रे, सूरि पद सिरोही जानरे ॥ सब ॥ ४ ॥ दिल्लीपति अकबर एक दिनमें बैठे झरूखामांही । , षट्मासी की करे तपस्या, श्राविका चंपा त्यांहिरे ॥ सब ॥ बादशाह बुलवा कर पूछे, तप करो किनके पसाय । चंपा कहे सुणो राजवीरे, देव गुरू पसाय रे ॥ सब ॥ ६॥ गुरू हमारे हीरविजयसूरि, विचरे नगर गंधार । दिल्लीपति अकबर बुलवावे, शुभ देई समाचाररे ॥ सब ॥ ७ ॥ विहार करता आगयेरे, फतेपुर नगर मझार । बादशाह स्वागत करेरे, उत्सवका नहीं पार रे ॥ सब ॥ ८॥ २०१
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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