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श्रीफकिर रचित
जगद्गुरु की जयन्ती [राग- भेरवी आशावरी, रामकली, धनाश्री ]. हीरसूरिको नमामि, जगद्गुरु हीरसूरि को नमामि ॥'टेर ॥ कूराशा नाथी का नंदन उकेश वंश सितारा । विजयदान सूरि के पट्टमें जिन शासन जयकारा ॥ ज० १ ॥ तेरह साल की उम्र में दीक्षा, बने पंडित सवाया । संवत् सोलह दश में जिनने, आचारज पद पाया ॥ ज० २ ॥ सम्राट अकबर को उपदेश · से, धर्मतत्व समझाया । जैनधर्म का प्रेमी विवेकी, हिंसात्यागी बनाया ॥ ज० ३ ॥ अकबर शाह ने फरमानों से, सूरि का मान बढाया । हर सालाना छै महीने का, अभय पटह बजवाया ॥ ज० ४ ॥ जीव छुडाये कैदी छुडाये, जजिया कर भी हटाया । जैन तीर्थ सूरीको देकर, परवाना भी बनाया ॥ ज० ५ ॥
अकबर नृपने श्रीगुरुजी को, जगदगुरु पद दीना । जगद्गुरु गुजरात पधारे, धर्म उद्योत में लीना ॥ ज० ६ ॥ संवत सोलह से त्रेपन में, गुरुजी स्वर्ग पधारे । भादों शुद्धि में एकादशी को, उन्नतपुर से प्यारे ॥ ज० ७ ॥ गुरुकृपा से सेवक पावे, आनंद हर्ष सवाया । जगद्गुरु के ध्यान ज्ञान से, फकीर ने फिक्र मिटाया ॥ ज० ८ ॥
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