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दादाजी हीरविजैसुरिजीकी आरति
जै जै आरती गुरुराजा सारै शुभ काजा । आरती मंगल पाप उतारण सबही दुष भाजा । जै जै० ॥ १ ॥
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दुंदुभिनाद मनोहर घंट गुहिर गाजा 1
सुरनरकिन्नर सेवत चरणकमल साजा । जै जै० ॥ २ ॥
शमदम गुण युत सोहै छत्तीसे साजा I मंगलकारण तुमही देषत दुख लाजा ॥ जै जै० ॥ ३ ॥
तीन भुवनमें कीर्त्ति गांवै सुरराजा I सेवक भवजल तारण तुम ही वड झाझा ॥ जै जै० ॥ ४ ॥
श्रीविजैहीरसूरीश्वर तपगच्छपति राजा 1 रतन सेवककुं दीजै श्रुत रिद्धि तप, ताजा ॥ जैजै० ॥ ५ ॥ ॥ इति हीरदादाजीकी आरती संपूर्ण ॥
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