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दया कन्या दयालु जो वर सावगूरे । वाधइ. जस सोभाग रूपइ रे रूपइ रे । शांतिनाथ परिसउ हूउ रे । ए वह वरनइं कुसल कोउ दिइ छोडारां रे ॥ ७॥ वाधइ कुलि धन वंस वहूथी रे वहूथी रे । न हूइ वर रोग वियोगडा रे । ए कन्या वीवाह मंश न वापइरइ रे । गुरुवरनंइ हुइ रात-जातइ रे । गोत्रइंसुं उंचउ वडइ रे । जिण ए कन्या परणी तस घर इंद्रनी रे । रिधि रमई सुर धेन दूझइ . रे दूझइ रे
. सकल धरम माता दया रे ॥ ८॥
॥छ॥
॥ इति श्री हीरविजयसूरि सिज्झाय समाप्ता
॥ श्री ॥ शुभंभवः ॥ छ॥
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