Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 20
________________ होनेवाले विशिष्ट पुरुषों का आख्यान इसमें हैं। “धन्य अनगार की कठोरतम तपस्या की प्रशंसा स्वयं महावीर ने की है।" ___ पण्हवागरण (प्रश्न व्याकरण)- इसमें आस्रव और संवर का वर्णन है। आस्रव द्वारों में हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह रूप पाँच पापों का तथा संवर-द्वारों में अहिंसादि पाँच व्रतों का विवेचन है। विवागसुय (विपाकश्रुत)--महावीर का प्रसंग इसमें गोतप गणधर के प्रश्नों के माध्यम से आया है। उनके प्रश्नोत्तरों का निष्कर्ष यही है कि मनुष्य अपने किये हुए कर्मों के फल को भोगता है। अतः दुष्कर्म न करते हुए सत्कर्म ही करना चाहिए। दिठिवाय (दृष्टिवाद)-इस अन्तिम बारहवें अंग में "विभिन्न दृष्टियों का (मत-मतान्तरों) प्ररूपण होने के कारण इसे दृष्टिवाद कहा गया है। दृष्टियाद का अंगों में विशेष महत्त्व है। इसके उपदेश के लिए बीस वर्ष की प्रव्रज्या आवश्यक मानी गयी है। दिगम्बर आम्नाय के अनुसार दृष्टिवाद के कुछ अंशों का उद्धार 'षट्खण्डागम' और 'कषायप्राभृत' में उपलब्ध है। प्राकृत जैनागम साहित्य की दो परम्पराओं में दिगम्बर-परम्परा उसे तो लुप्त मानती है, परन्तु श्वेताम्बर-परम्परा में उसे अंग, उपांगों, मूलसूत्र, छेटसूत्र और प्रकीर्णक रूप में विवेचित किया गया है। श्वेताम्वर परम्परा के अंगसाहित्य में भगवान महावीर के जीवनवृत्त विषयक अनेक मूल तथ्य प्राप्त होते हैं, जिसका विवेचन उपर्युक्त बारह अंगों के आलोक में प्रस्तुत किया गया है। आगमों में महावीर की जीवनी विषयक जो सामग्री प्राप्त होती है वह भी पर्याप्त मात्रा में सम्पूर्ण रूप से नहीं है। बत्र-तत्र बिखराव के रूप में जीवन-वृत्तों का उल्लेख है। आगम विषयक दृष्टिकोण की भिन्नता के कारण दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा में महावीर के जीवन की घटनाएँ भिन्न-भिन्न और परस्पर विरोधी भी निर्देशित हैं। अतः प्रामाणिक और ऐतिहासिक जीयनी लिखने में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। षट्खण्डागम में भगवान महावीर यह दिगम्बर परम्परा का ग्रन्य है। इसके छह खण्ड हैं। "प्रथम खण्ड का नाम 'जीवठाण, द्वितीय का 'खुद्दाबन्ध' (क्षुल्लक बन्ध), तृतीय का 'वन्धस्वामित्वविचय' चतुर्थ का 'वेदना', पंचम का 'वर्गणा' और षष्ट खुण्ड का नाम 'महाबन्ध' है। भूतबली ने 'महाबन्ध' की तीस हज़ार श्लोकप्रमाण की रचना की, यही 'महाधवल' नाम से विशाल ग्रन्थ है। इन सबमें महावीर के प्रसंग विविध रूपों में आये हैं।" 1. डॉ. जगदीशचन्द्र जैन : प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ. 91 2. वहीं, पृ. 48 3. वही.. पृ. 274-275 26 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर

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