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उल्लेखमात्र प्रसंग उल्लिखित किये हैं। वैज्ञानिक जगत् का सापेक्षवाद और भगवान महावीर का स्याद्वाद दोनों में घनिष्ट सम्बन्ध है । स्याद्वाद में भौतिक जगत् के साथ आत्मतत्त्व पर भी अन्वेषण है । इस दृष्टि से स्याद्वाद पुरोगामी दर्शन हैं।
वीरेन्द्रप्रसाद जैन ने अपने महाकाव्य में तीनों दर्शनों का जिक्र किया है, तो रघुवीरशरण 'मित्र' ने मात्र स्यादवाद की महिमा गावी हैं। समस्त आलोच्य महाकाव्य चरित्रात्मक महाकाव्य हैं। अतः भगवान महावीर की चरित्रगत विशेषताओं को स्पष्ट करने के लिए उनके द्वारा दिये गये उपदेशों के चित्रण पर ही अधिक बल दिया गया है । दार्शनिक सिद्धान्तों का विवेचन महाकाव्य की कलात्मकता को कहीं नीरस न कर सके, इसीलिए अनेकान्तवाद, स्याद्वाद आदि सिद्धान्तों का बौद्धिक विश्लेषण शायद नहीं हो पाया है।
षद्रव्य सिद्धान्त
द्रव्य सिद्धान्त के विवेचन में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छह द्रव्यों का स्थूल परिचय प्रस्तुत करके परमाणुवाद का आत्मवाद के साथ सम्बन्ध स्पष्ट किया है। जीव, जगत् एवं परमात्मा इन तीनों में परस्पर किस प्रकार का सम्बन्ध है | आत्मा परमात्मा के पद को कैसे प्राप्त कर सकेगा? आदि बातों के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि जीव सत् है, जगत् सत् है, परमात्मा भी सत् है । सृष्टि चेतन और अचेतन द्रव्यों से व्याप्त है। प्रत्येक द्रव्य का अस्तित्व स्वतन्त्र पृथक् रूप में है। आत्मा नित्य अमर है। कर्मबन्ध के कारण उसकी पर्याएँ बदलती रहती हैं। ईश्वर का कर्तृत्व न जीव के सन्दर्भ में है, न जगत् के सन्दर्भ में है। प्रत्येक आत्मा परमात्मा हो सकती है। समस्त आधुनिक आलोच्य महाकाव्यों में द्रव्यसिद्धान्त एवं जीव, ईश्वर, जगत् के स्वरूप का विवेचन यथार्थ रूप में हो पाया है। सिर्फ अभयकुमार योधेय ने इन सिद्धान्तों के विचारों की अभिव्यक्ति नहीं की है। उनका लक्ष्य प्रमुखतः जीवनी को प्रस्तुत करना ही रहा है।
सप्ततत्त्व सिद्धान्त
सप्ततत्त्व सिद्धान्त के विवेचन में जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष इन सातों तत्त्वों का सन्दर्भ आधुनिक कवियों ने अपने महाकाव्यों में दिया है । सप्ततत्त्व विषयक विचार भगवान महावीर के पूर्व के तीर्थंकरों ने प्रतिपादित किये हैं। आत्मा से परमात्मा पद तक पहुँचने की तर्कसम्मत प्रक्रिया का विवेचन इस सप्ततत्त्व सिद्धान्त में होने के कारण जैन सिद्धान्तों में इसका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। इनमें पाप और पुण्य जोड़ने से नौ पदार्थ होते हैं। वर्द्धमान से महावीर बनने की वैज्ञानिक प्रक्रिया का चित्रण इसमें है। चेतन आत्मा को जड़ अचेतन के अणु-स्कन्धों तथा राग-द्वेष-मोह के बन्धन से मुक्त कराना भगवान महावीर के विचारों का केन्द्रीय
भगवान महावीर का चरित्र चित्रण: 19